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उत्तराध्ययनसूत्रे
ज्योतिष्काणामायुः स्थितिः । इयमपि तारकाक्षत्र स्थिति शेषान्तं पल्योपमचतुर्भागन्नापैव जघन्या स्थितिरित्यभिधानादिति ॥ २२०/२२शाद२१/२२३ ॥ રરરરરરરરર૮ર્રાર્SRE FE}}
भाग है। ज्योतिष्क देवोंकी जो एक लाख वर्षे अधिक एक पल्योरमकी उत्कृष्ट आयु कही है वह चलकी अपेक्षा ही कही गई जाननी चाहिये । कारण कि सूर्यकी एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपमकी उत्कृष्ट आयु कही हैं । ग्रहोंकी भी इतनी ही है । नक्षत्रोंकी उत्कृष्टस्थिति आधे पल्योरमकी है । तारोंकी उत्कृष्ट स्थिति पल्योपमका चौथा भाग है | तथा जो जघन्य स्थिति यहां पत्योपसके आठवें नाग प्रमाण कहीहै वह भी तारकों की अपेक्षाले ही कही गई जाननी चाहिये । तारकोंके सिवाय बाकीचे ज्योतिष्कों की तो जघन्य स्थिति परयोपमके चतुर्थभाग ही है ॥२०॥ (सोहम्नम्मि-सौमे सौधर्म देवलोकतें (कोसेण- उत्कर्षेण) उत्कृष्टस्थिति दो चैव सागराई विद्याहिया हो एव सागरी व्याख्यानौ दो सागरोपनकी है तथा जहन्तेर्ण एवं पलियोनंजघन्येत च एकं पल्योपनन् । जघन्य स्थिति एक पत्योकी है ||२२॥रा (इसाणन्नि ईशाने ईशान नामके द्वितीय लोकनें (उक्कोलेप-उत्कर्षेण) उत्कृष्ट स्थिति दो सागराई विवाहिया - नौ सागरौ व्याख्यातौ दो
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ज्येतिः डेबोदी के के . उष्ट मा છત્તાવેલ છે. તે ચંદ્રનો રૂપે જ પતાવેલ છે તેમ નવુંનું એક છે, કારણુ है, सूर्यतो के हुनर के पी यु डेड है. અહેની પશુ એટલી જ છે, નસ્ત્રેનો હેર માટે . પ્રત્યે મની છે, તારાઓનો ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ પક્ષે પસી ચેયા સાની કે. ત: જે જન્ય थिति नहीं पश्योपताना પેક્ષાથી જ કહેવાયેલ જાણવી જેને તારો तो वन्य स्थिति ये येया पती
ते दादोनी
સીવાય મ કેતા જ્યે તે કેની
२२० ॥
अन्वयार्थ–सोहन्तन्त-तोषने दोष डेवोन लेन
लृष्ट स्थिति को चैत्र सागराई विहिरी अलौ बेचते
यहती है, तथा जहन्ने एवं पहिलं
पयोव
स्थिति मे पश्येोपसती है. ॥ २२९ ॥
अन्वयार्थ —शेषयन्ति रक्तपेंट स्थिति
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सां
गराईयों के नागरी