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प्रियदर्शिनी टीका अ ३६ खेचरजीवनिरूपणम्
उक्तहि---'सत्तट्ठभवा उ तिरिमणुग' इति । अत एतावतएवाधिकस्य संभव इति भावनीयम् ॥१८५॥१८६।।
खेचरजीवानाहमूलम्-चसे उ लोपकली ये, तहया लसुग्गपक्खिया।
विषयपखी ये बोधना, पवित्रणो यचडेव्विहा ॥१८७॥ लोगेगदेले ते लवे, ल सम्वत्थ वियाहिया । इत्तो कालविभागं तु, वोच्छं तेलिं चउंठिवहं ॥१८॥ संतइं पप्पणाईयाँ, अपजवलिया विय। ठिई पडुच्च साईया, सज्जवसिया विय ॥१८९॥ पलिओसरल सांगो, असंखजइमो भवे ।
आंउठिई खहयराणं, अंतोमुहुत्तं जहनिया ॥१९॥ इससे अधिक नहीं। कारण कि पंचेन्द्रिय नर और तिर्थञ्चोंके इनसे अधिक निरन्तर भवान्तरोंका अभाव है। बादमें किसी न किसी दूसरी जातिमें उनका जन्म हो जाता है। जैसे कहा भी है-"लत्तभवा उ तिरिमणुग" इति । इसलिये इतनी ही अधिकताका संभव हो सकता है ऐसा जानना चाहिये। (थलयराणं विजदस्मि सए काए-स्थलचराणां त्यक्ते वके काये) स्थलचर जीवोंका अपने कायके छोड़ने पर (अंतरं उक्कोसं-अंतरं उत्कृष्टम्) अन्तर उत्कृष्ट ( अणंतकालं-अनन्तकालम् ) अनंतकाल प्रमाण तथा (जहन्नयं-जघन्यम् ) जघन्य (अन्तोसुहत्त-अन्तमुहूर्तम् ) अन्तर्मुहूर्त प्रमाणका है ॥१८५॥१८६॥ વધુ નહીં. કારણ કે, પંચેન્દ્રિય નર અથવા તિર્યંચે ને તેનાથી અધિક નિરંતર ભવાંતરે અભાવ છે તે બાદ કઈને કઈબીજી જાતિમાં તેનો જન્મ થાય છે. જેમ डर छ " सत्तटू भवा उ तिरीमणुग" ति! मा १२) सारसी २१ अधिपताना स स श छ मेम. MY नये. थलयराण विजढम्मि सए काए-रथलचराणां त्यक्ते स्वके काये स्थाय२ वोन पोताना शरीर छ।उवा पछी अन्तर उकोसं-अंतरम् उत्कृष्टम् अत२ कृष्ट अणंतकाल-अनन्त कालम् Aatm प्रमाण तथा जहन्नयं-जघन्यम् धन्य अन्तोमुहुर्त-अन्तमुहूर्तम् मतमुंडूत प्रभानु छ. ॥ १८५ १८६ ॥
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