________________
११३ तीसवें अध्ययनका प्रारम्भ
३६८
३७१-३७२
३७३-३८१ .
११४ तपके स्वरूप और उनके फल पानेवालों की गतिका वर्णन ३६९ - ३७० ११५ कर्म खपाने के प्रकारका दृष्टान्तपूर्वक वर्णन ११६ तपके भेदप्रभेदों का वर्णन ११७ मरणकालमें होनेवाले अनशनका वर्णन ११८ ऊनोदरीके कलका वर्णन ११९ क्षेत्रअ मौका वर्णन १२० कालकणोदरीके फलका वर्णन १२१ भावऊणोदरीका वर्णन १२२ पर्यायऊणोदरीका वर्णन १२३ भिक्षाचर्याका वर्णन १२४ रसपरित्यागका वर्णन १२५ कायक्लेशका कथन १२६ संलीनताका वर्णन १२७ आभ्यंतर तपका वर्णन १२८ दशविध प्रायश्चित्त का वर्णन
१२९ विनय का वर्णन १३० वैयावृत्य का वर्णन
१३१ स्वाध्याय का वर्णन
३८२-३८९
६९०-३९२
१३९ अदत्तादान शील के दोष वर्णन
१४० रूपमें द्वेष करना भी अनर्थ मूलत्व होने का कथन
१४१ रूपमें रागद्वेष न करने पर गुण का कथन
१४२ श्रोतेन्द्रियका निरूपण १४३ घ्राणेन्द्रिय का निरूपण
३९२-३९७
३९८-३९९
४०० - ४०१
४०२-४०३
४०४-४०६
४०७
४०८
४०९-४१०
-४११
४१२-४१५
४१६
४१७
४१८
४१९-४२०
१३२ ध्यानतप और व्युत्सर्गतप का वर्णन १३३ अध्ययन का उपसंहार और दो प्रकार के तपके फलका वर्णन ४२१-४२२ १३४ इकतीसवें अध्ययन का प्रारम्भ और चरणविधि का वर्णन ४२३ - ४४४ १३५ arted अध्ययन का प्रारम्भ और प्रमादस्थाका वर्णन ४४५-४७६ १३६ प्रमादस्थान वर्णनमें चक्षुरिन्द्रिय का वर्णन १३७ राग के अनर्थ मूलत्व का निरूपण
४७६-४८२
४८३-४८८
१३८ रूप में तृप्ति रहितो के दोषों का वर्णन
४८९
४९०-४९४
४९५-४९६
४९७-४९८
४९८-५१०
५१०-५२०