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________________ ६५२ उत्तराध्ययनसूत्र द्वावुदधी-द्व सागरोपमे, पल्योपमासंख्येयभागं च पल्योपमासंख्येयभागाधिके द्वे सागरोपमे इत्यर्थः, उत्कृष्टा स्थितिः। __अनया गाथया निकायभेदमनङ्गीकृत्यैव लेश्यास्थितिरुक्ता, इह च दशवर्षेसहस्राणि तेजोलेश्याया जघन्या स्थितिरभिहिता, प्रक्रमानुरूपेण तु कापोतलेश्याया उत्कृष्टा स्थितिः सैवास्याः समयाधिका प्रामोति परतु-प्रशस्तलेश्या स्थिति वर्णनोपक्रमे इह कापोतलेश्याया अप्रशस्तत्वात् तत्सक्रमोऽनाहत इतिवोध्यम् ॥ ५३ ॥ __ पद्मायाः स्थितिमाह-- मूलम्-जो तेहुए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ सयमब्भहिया । जहन्नेणं पम्हाए, देसउँ मुहुत्ताहियाइ उक्कोसी ॥५४॥ छाया-या तेजसः स्थितिः उत्कृष्टा सा तु समयाभ्यधिको । जघन्येन पद्मायाः, दश तु मुहूर्ताधिकानि उत्कृष्टा ॥५४॥ टीका--'जा तेऊए ठिई खलु ' इत्यादिया तेजसः-तेजोलेश्यायाः, खलु उत्कृष्टा स्थितिः, सा तु सैव समयाभ्यधिका पद्माया जघन्येन स्थितिः। दश तु-दशैव प्रस्तावात् सागरोपमाणि, मुहूर्ताधिकानि जघन्य स्थिति । प्रकरण के अनुसार तो कापोतीलेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति कही गई है वही एक समय अधिक इसकी स्थिति होनी चाहिये थी परन्तु प्रशस्तलेश्या की स्थिति के वर्णन के उपक्रम में कापोतलेश्या को अप्रशस्त होनेकी वजहसे वह क्रम यहां स्वीकारनहीं किया गया है। पद्मलेश्या की स्थिति इस प्रकार है-'जा तेऊए' इत्यादि। अन्वयार्थ—(जा-या) जो (तेऊए-तेजलः) तेजोलेश्या की (खलुखलु) निश्चय से ( उक्कोसा ठिई-उत्कृष्टा स्थितिः ) उत्कृष्टस्थिति है (सा-सा) वही (समयमभहिया-समयाभ्यधिका) एक समय अधिक होकर (पम्हाए-पद्मायाः ) पालेश्या की (जहन्नेणं ठिई-जघन्येन જઘન્ય સ્થિતિ પ્રકરણ અનુસાર તો કાપિત લેશ્યાની જે ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ કહેવામાં આવેલ છે તે એક સમય વધુ એની સ્થિતિ હોવી જોઈએ પરંતુ પ્રશસ્તલેશ્યાની સ્થિતિના વર્ણનના ઉપક્રમમાં કાતિલેશ્યા અપ્રશસ્ત હોવાને કારણે એકમ અહીં અંગીકાર કરવામાં આવેલ નથી પણ पाश्यानी स्थिति मा ४२नी छ-" जा तेउए" त्याह! मन्वयार्थ-जे-या तेउए-तेजस. तोश्यानी खलु-खलु निश्चयथी रे रफासा ठिई-उत्कृष्टा स्थितिः Se स्थिति छेते समयमभहिया-समयाभ्यधिका मे४- पधु- सन पम्हाए-पद्मोयाः या देश्यानी जहन्नेणं ठिई-जघन्येन स्थितिः न्य
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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