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उत्तराध्ययन भाग चौथा (अध्य. २५ से ३६ तक)का
विषयानुक्रमणिका अनुक्रमाङ्क विषय
पृष्ठांक १ पच्चीसवें अध्ययनका प्रारम्भ २ जयघोष और विजयघोष के चरित्रका वर्णन
२-४७ ३ छाईसवें अध्ययनका प्रारम्भ और दश प्रकारकी सामाचारीका वर्णन
४८-५६ ४ ओघ सामाचारीका वर्णन
५६-५८ ५ विनयशील साधुके औत्सर्गिक दिनकृत्यका वर्णन ५९-६० ६ पौरुपिकालका परिज्ञान ७ पादोन (पोन) पौरुषी जाननेका उपाय
६४ ८ मुनिके रात्रिकृत्यका वर्णन
६५-६८ ९ विशेषरूपसे मुनिके दिवसकृत्यका कथन
६९-७१ १० प्रतिलेखना विधिका वर्णन
७२-७५ ११ प्रतिलेखनामें दोषोंके त्यागविषयमें सूत्रकारका कथन ७६-८० १२ भंगप्रदर्शनपूर्वक सदोष और निर्दोष प्रतिलेखनाका विशेष रूपसे वर्णन
८१-८३ १३ निर्दोष प्रतिलेखनाको करताहुआ मुनिके छः कायका विराधक होनेका कथन
८४-८५ १४ निर्दोष प्रतिलेखना करताहुआ मुनिके आराधक होनेका कथन ८६ १५ आहारके छ कारणोंका निरूपण
८७-९० १६ आहारके त्यागका छ: कारणोंका वर्णन
९१-९२ १७ भिक्षाविधिका वर्णन
९३-९५ १८ परिष्ठापन विधिका वर्णन
९६-९९ कायोत्सर्गमें अतिचारका चिन्तन
९९-१०० २० कायोत्सर्गमें स्थित मुनिकी रात्रिचर्याकी विधिका कथन१०१-१०४ २१ कायोत्सर्गमें ज्ञानादि अतिचारका चिन्तन १०५-१०६ २२ कायोत्सर्गमें तपका चिन्तन और सिद्धोंकी स्तुति १०७-१०८ २३ सामाचारीका कथन और उपसंहार अध्ययन समाप्ति १०९-११० २४ सताईसवें अध्ययनका प्रारम्भ
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