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________________ २७ - - प्रियदर्शिनी टीका अ १५ गा १० भिक्षुगुणप्रतिपादनम् इदानी ग्रासपणादोपपरिहारमाह--- मूलम्-ज'किचाहारपाणग, विविह खाइमसाइम परे सि लहूं। जोत तिविहेणे णाणुकपे,मणवयकायसुसवुडे से भिक्खू ॥१२॥ छाया-यतिकाचदाहारपानक, विविध साय-स्वाद्य परेभ्यो लावा। यम्त नितिन नानुकम्पते, मनोकायमुसटत स भिक्षु ॥१२॥ टीका-'ज किंचे' त्यादि । यत्किचिन् अल्पमपि आहारपानकम्माहारम् अन्नादिकम् , पानक-पानीय दुग्मादिकम् , तथा-विविधम् भने कमकारक माद्य-स्वायम् तत्र-माद्यम् अचितैपणीयपिण्डवरादिकम् , स्वाद्यबादिकम् , अनयो समाहारस्तचपरेभ्यो गृहम्येभ्यो लकवा ममाप्य य. साधु तवचनव्यत्ययात्तेनाहारादिना निविन है। इस प्रकार प्रतिक्रन के ऊपर भी क्रोध करने के परिहार के इस कपन से अगेर भिक्षा मनपी दोगों का भी परिहार सापु को कर देना चा िये, यह बात जानी जाती है ॥ ११ ॥ अब यहा ग्रासपणा के टोयों का परिहार कहते हैं'ज किचा' इत्यादि। अन्वयार्थ-(विविह-विवि पम् ) अनेक प्रकार का (ग्वाडमसाइमखाद्यम् स्वायम्) ग्वाद्य अवित्तग्यगीर पिण्ड ग्वजूरादिक आहार, खाद्यलवगादिक आहार, तथा (आहारपाण-आहारपानकम् ) अन्नादिक से निप्पन्न रोटी आदिरूप आहार एव पीने योग्य दुग्धादिकरूप आहार (परेसिं-परेभ्य') दुसरे दाता गृहस्थों के यहां से (ज किंच-यत् किश्चित्) मात्रा मे अल्प भी मिले तो भी (लद्ध-लम्चा) उसको प्राप्तकर (जो-य) जो साधुजन (त-तम्) उस प्राप्त आहार द्वारा (तिविहेग-त्रिविधेन) -स भिक्षु ते न मा प्रमाणे प्रतिन1 6५२ प ध न ४२व। तभ। આ કથનથી અશેષ ભિક્ષા સ બ ધી દોને પણ પરિહાર સાધુએ કરવું જોઈએ એમ આ વાત જાણી શકાય છે કે ૧૧ - હવે અહી ગ્રામૈપણાના દેનો પરિહાર કહેવામા આવે છે "ज फिन्चा" त्याहि मन्वयार्थ-विविह-विविधम् अने: पारना खाइमसादम-खाद्यम् स्वाद्यम् ખાદ્ય-અચિત્ત-એષણીય પિડ ખજૂર આદિ આહાર, સ્વાઇ-લવિ ગાદિક આહાર, तथा आहारपाणग-आहारपानझम् मन्नाथी निश्पन्न टी माहि३५ मार भने चावा योग्य दूध माEि३५ माहार परेसिं-परेभ्य, भीn eral गृहस्थाने त्याथी ज किंच-यत् किंचित् मात्रामा २६५ ५५५ भणे तो लद्ध-ल वा ने प्रास ४श जो-य २ साधुन त-तम् मे पास माला हा तिविहेण-विविधेन
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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