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प्रियाशिनी टीम न ० महानिम्रयम्बम्पनिम्पणम मूत्रम्-ती कल्ट पभायम्मि, आपुच्छिताण वर्धये।
खतो दतो निरिभी पडओ अणगारिय ॥३४॥ छाया--तत. कल्ये प्रभाते, आपृय पान्यवान् ।
भानी दान्तो निरारम्भ , प्रनितोऽनगारिताम् ॥३४॥ टी-.--'तो' इत्यादि।
हे राजन् । तत तदनन्नर पंढनापये मति कल्ये द्वितीरदिने प्रभात मात ले पायवान आपन्य क्षान्तो दान्तो निरारम्भोऽनगरिता पननिता प्राप्त ॥३४।।
'एबच' इत्यादि।
अन्वयार्थ-(नराहिया -नराधिप) हे राजन् । एव तिडत्ताणग्य विन्नचित्वा) ऐसा विचार कर (पसुत्तोमि-प्रसुप्तोऽस्मि) में मो गया (राईए परियत्तती वेयगा ग्वय गया-रात्री परिवर्तमानाया में वेदना क्षय गता) ज्यों ही रात्रि व्यतीत हुई कि मेरी यह वेदना विल्कुल शात हो गई ॥3॥ _ 'तओ सल्ले' इत्यादि।
अन्बया --फिर बाद मे हे राजन् । मने (कल्ले-कल्ये) दसरे दिन (पभायम्मि प्रभाते) प्रात काल मे ( पवे-बान्धवान्) धुओ से (आपुछित्ताण-आपृच्छय) पृठकर (ग्वतो दतो निरारम्भो जणगारिय पन्य इओ-शान्त दान्त निरारम्भ. अनगारिताम् प्रत्रजित) क्षान्त दान एव परिग्रह से सर्वथा रहित होकर मुनिदोक्षा धारण करली ॥४॥
'एच" त्याला
मन्वय 4- नराहिवा-नराधिप से रन् एवचित.त्ताण-एव चिन्तयित्वा भावाविया२ ४१ पसृत्तोमि-प्रमुप्तोऽस्मि १ सुध गयो, राईए परियत्ततीए मे वेयणा बय गगा-रानौ परिवर्तमानाया मे वेदना क्षय गता रात पुरी મરી એ વેદનાઓ બિલકુલ સાત થઈ ગઈ ૩૩
"तो कल्ले"धयाहा
स-यार्थी-मा पाथी है । मेले-रल्ये भी हिवसे पभायम्मि -प्रभाते सवारभार वाधवे-बान्धवान् माध्यमाने आपुच्छित्ताण-अपृच्छप पूछीन (वतो दतो निरम्भो जगगारिय पबहओ-सान्त दान्त निरारम्भ अनगा रिवाम् प्राजित दात, हात, म पग्रिडको सपथात यने मनिहाक्षा ધારણ કરી લીધી ૩૪