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________________ प्रियनिदानी टोका अ.२० मानिर्ग सम्बगपतिरपणम् ५०३ तथामृलम्--माया वि में महागय ' पुत्तसोगदुहदिया । न यं दुकावा विमोयति. एसा मज्झै अणाहया ॥२५॥ डाया-माताऽपि में महारान !, पुत्रशोकदु सार्दिता । न च द ग्माद् रिमोवयति, एपा मम जनायता ||२५|| टीमा-'मायाधि' इत्यादि । हे महाराज ! मे=मम माताऽपि पुत्र शोर मार्दिता-पुत्रविषय शोक - पुत्रशोक =ना स्थमित्य मम पुनो रोगग्रस्तो जान इत्यादिरूपम्त्ततो यद् दुग्म तेनार्दिता-पीडिता जाता । तथापि च सा मा दुःसाद न विमोचयति न विमोचितवती । एपा मम अनागता। भवात्वादेपत्वे पहत्वम् ॥२५॥ तथा-- मूत्रम्---भायरो में महाराय।, सगा जेटकनिहूंगा। न य दुक्सो विमोयति, एसा मझे अणाहया ॥२६॥ छाया--भ्रातरो मे महाराज !, या ज्येष्ठकनिष्ठका । न च दु.खाद विमोचयन्ति, एपा मम अनायता ॥२६॥ 'माया वि मे महाराय' इत्यादि। __ अन्वयार्य-(महाराय मे माया वि पुत्तसोगटिया-महाराज मे माता अपि पुत्रशोकदु ग्वादिता जाता) हे राजन मेरी माता भी "हा मेरा यह पुत्र इस प्रकार से रोगग्रस्त कैसे हो गया है" इत्यादिरूप पुत्रसनपी दुःग्व से पीडित होने लगी। परतु फिर मुझे (दुक्ग्वा न य विमोयति-दु ग्वात् न च विमोचयति) दुःन से नही छुडा सकी । (ग्सा मज्झ अणाया-प्पा मम अनाथता) यही मेरी अनाथता है ॥२८॥ "माया वि मे महाराय" त्यात अन्वयार्थ:-महाराय मे मायावि पुत्तसोगदु हट्टिया-महाराज! मे माताऽपि पुत्रगोफ द ग्वारिता जाता है ! भारी माता ५५ "डाय! । मा मुन આ પ્રકારના રોગને ભેગ કઈ રીતે થયે?” ઈત્યાદિ રૂપ પુત્ર સ બ ધી દુ ખથી પીડા लोगqqn evil प२तु ते ५ भने दुक्सा न य विमोयति-दु ग्वात् न च विमोचयन्ति मथी वी २८ नहीं एसा मज्झ अणाहया-एपा मम अनाथता આ મારી અનાથતા છે૨૫ ७५
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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