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________________ ७७३ प्रियदर्शिनी टीका अ २० मृगापुप्रचरितवर्णनम् जन. स पान्धयो विहारयात्रया-क्रीडार्थम-ववाहनिकादिरूपम् उदिस्य निर्यात - नगरान्निर्गत सन मण्डिकुमो-मण्डिकुसिनामके पत्ये उद्याने समागतः । 'विहा रजन' इत्यत्र तृतीयायें द्वितीया ॥२॥ तदुधान कोदशमित्याह-- मूलम्-नाणादुमलयाइवण, नाणापक्विनिसेविय । नाणाकुसुमसछन्न, उजाण नदणोम ॥३॥ छाया--नानाठमलताकोणे, नानापक्षिनिषेवितम् । नानाकुसुमसन्नम् , उद्यान नन्दनोपमम् ॥३॥ टीमा- 'नाणादुम' इत्यादि । तदद्यान नानाट्टमलतासीन नाना-अनेकविधा ये दमा क्षा: लताश्च ताभिरामीण व्याप्तम् , तथा नानापतिसमार=नाना-अनेक जातीया ये पक्षिण म्तनिरितसश्रितम्, तथा-नानाकुमुमसउन्नम्- नाना अनेक जातीयानि यानि कुमुमानि-पुष्पाणि ते सन्नम् आच्छादितम् , तथा-नन्दनोपम चासीत् ॥३॥ एच (मगहारियो-मगवाधिप ) मगधदेश का स्वामी (सेणियो रायाअणिोराजा) अगिक राजा किसी समय (विहारजत्त-विहारयाना) विहार यात्रा क्रीडा के लिये (निजाओ-निर्यात') नगर से प्रस्थित हो कर (मडिकुच्छिसि चेडए-मण्डिकुलो चैत्ये) मडिकुति नामक उद्यान मे आये ॥२॥ यह उद्यान कैसा है मो करते है-नाणादुम०' इत्यादि। जन्वयार्थ--(नाणादुमलयाटप्ण-नानाहमलताकीर्ण) नाना प्रकार के शक्षो एव लेताओ से व्याप्त तथा (नाणापक्खिनिसेविय-नाना पत्र निपेचितम्) नाना प्रकार के पक्षियों से युक्त एव (नाणा कमुमस उन्ननानाकुसुमसच्छन्नम् अनेक प्रकार के-पुष्पों से युक्त (उजाण नदणो वम-उयान नन्दनोपमम्) नन्दनवन के जैसा या ॥३॥ धापिप भने भगध शना स्वामी सेणियो राया-णिको राना , Pim समय विहारजत्त-विहार याना विडार यात्रा जीना भाटे निजाओनिर्यात' नाथी 8tP नजीर मडिकुच्छिसि चेइए-मण्डिकुसौ चैत्ये मक्षि નામના ઉદ્યાનમાં પહોંચ્યા છે ૨ से Gधान तु तेनु पनि ४ छ-"नाणाम" त्यादि । म क्याथ-नाणादमलयावष्ण-नानादमलताकीण भने रना । सने भने तामाथी १२५२ मे तेमन नाणापक्खि निसेविय-नानापति निषेवितम् विविध प्रा२न पक्षीमा मन नाणाकुसुमसच्छन्न-नानाकुसुमसच्छन्नम् मने २ सुभधी मनाङ२ पाथी नरेस से उजाण नदणोवम-उयान नदोपमम् धान નન્દનવન જેન ઠત | 1 1
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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