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________________ ५५४ D उत्तराध्ययनसो यतानेकस्थानवासगील:-मगो हि कदाचित्तरतले तिष्ठति, तथा-गोचरः ध्रुषा निधितो गोरित्र चरश्चरण यस्य स तथा सदा गोचरलपाहाराहरगशीलश्र भवति । एव मुनिरपि भाति । एकः दन्यतो मुनिगगसमन्वितत्वादनेकोऽपि सन् भावतो रागद्वेपरहितत्वादेक एप, जनेकवारी-भिक्षार्थगुचनीचम यमानेका नियतगृहेषु भ्रमणशीलः, अनेकमास =अनियतम्यानेषु नामकारी, तथा-सूत्र गोचरश्व-सर्वदा भिक्षालब्धाहारग्रहणशीरथ । एतादृशो मुनिर्गाचया मरिष्ट' नो हीलयति अन्तमान्तेऽशनादिके प्राप्ते सति दातार नापमानयति । अपि च तथाविधाहाराप्राप्तौ नो विसपति-स्त्र पर पान निन्दति ॥८॥ . एव मृगवर्यास्वस्प निरूप्य यन्मगापुत्रेणोक्त, यच्च तन्मातापितृभ्यामुक्तम् , ततो यचाय कतवास्तदुच्यते-- मूलम्-मिगोरिय चरिस्सामि, एंव पुत्ता जहासुंह । अम्मापिईहिऽMण्णाओ, जहांड उर्वहि तओ ॥८॥ स्थानों में रहा करता है तथा (धुवगोयरेय-ध्रुवगोचरश्च) निश्चय से गोचर भूमि में लब्ध आहार को खाता पीता है (एक-एवम्) इसी तरह (मुणी-- मुनिः) मुनि भी (ग-एक) रागढेप से रहित होने के कारण अकेला होता हुआ (अणेगयारी-अनेकचारी) भिक्षा के निमित्त उच्च, नीच, एव मध्यम अनेक अनियत गृहो में भ्रमण करता है और निश्चित वास विना का हो जाता है। तया सर्वदा भिक्षा लब्ध आहार का करने वाला होता है। ऐसा मुनि जघ (गोयरिय पविठ्ठ हवा-गोचयाँ प्रविष्टो भवति) गोचरी के लिये निकलता है तब अत प्रात आहार के मिलने पर दातारकी (नो हीलए-नो हीलयति) हीलना नहीं करता है अथवा(नो चिय खिसइज्जा-नो ऽपिच खिसयति) नहीं मिलने पर अपनी और पर की निदा भी नहीं करता है ॥८॥ धवगायरेय-ध्रुवगोचरश्च निश्चयथा गायर भूमिमा २ भणी २ ते माहारने माय पीथे छ एव-एवम् तेवी शत मणी-मनि• मुनिपरी एग-एक रावषयी રહિત હોવાના કારણે એકલા હોવા છતા ભિક્ષા નિમિત્ત ઉ ચ નીચ અને મધ્યમ અનેક અનિયત ગ્રહોમાં ભિક્ષા નિમિત્તે ભ્રમણ કરે છે અને નિશ્ચિતવાસ ૨હીત હોય છે તથા સદાને માટે ભિક્ષા આહારને કરવાવાળા હોય છે એવા મુની જ્યારે गोयरीय पविढे हवा-गोचर्या प्रविष्ठो भवति गायरी भार बहार नि छ त्यारे सन्तप्रान्त मा२ भा छ। पापना हातानी नो हीलचे-नो होलयति नि ४२ता नथी अथवा नो विय खिसइज्जा-नोऽपिच खिसयति न माथी પિતાની તેમજ બીજાની નિંદા પણ કરતા નથી કે ૮૩
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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