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________________ ७३३ प्रियदर्शिनी टीका अ १९ मृगापुनचरितवणनम् टीका-'खरे' इत्यादि। हे मातापितरो! नरकेऽहम् अनेकग -अनन्तवार कल्पनीभितरीभि कल्पित =चत्ररत्नाण्डित , पाटित = द्विधा कृव तीक्ष्णधाराभि भुरिकाभि दिन्न. कतरीर तिर्यक् ग्वण्डित , चपुन क्षुरै उत्कृत्त =अपनीतचर्माचाभूतम् ॥६॥ किं चमूलम्-पासेहि कूडजालेहि, मिओ वा अवसो अह । वाहिओ व रुंडो यं वसो चैव विवाओ ॥६॥ छाया-पाशै कटजाले , मृग वापशोऽहम् । साहितो पद्धरुद्वश्व, यशथत विपादित ॥६३। टीका--'पासेहि' इत्यादि । हे मातापितरो ! नरकेऽह परमापार्मिक पाश बन्धन कुटजालैश्च-मृग प्रवञ्चनार्य निर्मितर्जाले मृग इव वाहित विपलब्ध , तथा-पद्धरुद्धश्व-बद्धो-तथा-'खुरेहिं' इत्यादि ।। अन्वयार्थ हे माततात । नरकम में (अणेगमो-अनेक्शः ) अनन्त वार (कप्पणीरिय-कल्पनीमि ) कैचियों से (प्पिओ-कल्पित ) काटा गया है। (फालिओ-पाटित) वस्त्र की तरह फाडा गया है। (तिस्वधाराहिं खुरेहि-तीणधाराभि क्षुरै ) तीब्णधार वाली छुरियो द्वारा (छिन्नो -छिन्न छिन्नभिन्न किया गया है तथा और तो क्या (छुरियाहि-- छुरिकामि) क्षुरों उस्तरो द्वारा (उक्त्तिो -उत्कृत ) मेरा चमडा भी मुझ से काट कर अलग किया गया था ॥ ६२ ॥ फिर भी--- 'पासे दि इत्यादि । अन्वयार्थ--हे माततात ! नरकमें (अह-अहम् ) मुझे परमापार्मिक तथा- "खुरेहि" त्या अन्वयार्थ:-हे माता पिता २४मा हु अणेगसो-अनेकश. अने: 4. कप्पणीहिय-कल्एनीभि. तर कपिओ-कल्पित. पाये। छु भने फासिओ -पाटितः पनी भा५४ यिरायो छु तिक्खधाराहि खुरेहि-तीक्ष्णधाराभि रै. ताधारवाजी शमाथी छिन्नो-छिन्न. छिन्नलिन राय छु तया धारे तो शुट ५२तु छुरियाहिं क्षुरिकाभि छ।यो म२ सखाया। उक्त्तिो -उत्कृतः भारी यामडी पी पी भाराथी गुही छे ॥ १२ ॥ छता पशु- "पासेहि" इत्यादि। सन्याय-भाता पिता! न२४मा अह-अहम् ५२भाधामि देवाये
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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