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________________ -- RA - - - - M - wasARRIAL-man -in . उत्तराध्ययनसूत्रे नासि ! यो हि सुखोचितः गुयुमार. सुग्योंगित वादियुक्ताम्य श्रामण्यमनुपार यितु समर्थी भपित नाईसीति भार ३४॥ असमर्थतामेर दष्टान्त समर्थय नाह-- मूलम्-जावजीवमविस्सामो, गुणोण तु महन्भरो। गईओ लोहमारोव्य, जो पुत्तो। हो. दुबेहो ॥३५॥ छाया--यार-जीरमविनामो, गुणाना तु महाभरः । गुरुको लोहमार उघ, यः पुत्र ! भाति दुर्वहः ॥३५॥ टीका-'जायजीव' इत्यादि। हे पुन । चारित्रसम्बन्धिना गुणानाम्मृलोत्तरगुणाना तु यो महाभर = महाभार. स लोहमार डा गुरुको गरिष्ठ , तथा यारउनीपम् अविश्राम:नास्ति विश्रामो यम्मिन् स तथा, अत एव दुह. दु.खेन गोहव्यो भवति । भो पुत्र! त्व श्रामण्यमनुपालयितुम् प्रभुः न भवसि) अत तुम पूर्वोक्तगुणवाले इस श्रामण्य पद को पोलन करने के लिये समर्थ नहीं हो सकते हो । जो सुग्वोचित मुकुमार एव सुजित नहीं होता, हे पुत्र' वही इस श्रामण्यपदको कदाचित् पाल सकता है। तुम्हारे जैसे लाडले राजकुमार नहीं ॥३४॥ अव चारित्र पालनेकि असमर्थता को दृष्टान्तों से कहते है'जावजीव' इत्यादि। अन्वयार्थ-(पुत्ता-पुत्र) हे पुत्र । (गुणाण-गुणानाम्) चारित्र सबधी मूलगुणों एव उत्तरगुणों का भार कोई मामूली भार नहीं है यह तो (महन्भरो-महाभार) बहुत भारी भार है। (लोहभारोव्व गरुओ-लोडभार इव गुरुक) लोहेका जैसा भार बहुत भारी होता है ऐसा हुसी-हे पुत्र व श्रमण्यमनुपालयितु प्रभु न भवसि माथी तु मा ४७क्षा ગુણવાવાળા બા શ્રમણ્ય ૫નુ પાલન કરવાને માટે સમર્થ થઈ શકીશ નહ જે સુખમાં ઉછરેલ સુકુમાર અને સુમરજીત નથી હોતા તે શ્રમણ્યપદને કદાચિત પાળ શકે છે પરંતુ હે બેટા ! તારા જેવો લાડીલે રાજકુમાર નજ પાળી શકે છે ૩૪ it वे यारित्रपासननी असमताने हातथी हे छ.--"जावज्जोर" हत्या मन्वयाथ-पुत्ते-पुत्र पुत्र । गुणाण-गुणानाम् शास्त्रि समधी भूण गुणा भने उत्तर शुभाना मारत भामुसी लार नथी महलभरो-महाभार ५९ सारे सा२ लोहमारोव्व गरुओ-लौहभार इव गुरुक दाना ला२ म धून
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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