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________________ १०४ उत्तराध्ययनसूत्रे छाया---एतादृश. पश्चकुशीलासटत्तः, रूपधरो मुनिराणामधस्तनः । अस्मिन लोके विपमिर गर्हितः, न म इह न परलोके ॥२०॥ टीका--'ण्यारिसे' इत्यादि । एतादृश.-पूर्वोक्तरूप. पञ्चकुशीलासरत' पञ्चकुगीला'-पार्श्वस्थाप्रसन्न शील ससक्तयथान्छन्दाः-तत्र-पार्धम्या:-सदनुष्ठानाद पार्थे तिष्ठन्तीति पार्थ स्था:-शिथिलाचारा इत्यर्थः । अप्रसन्ना' साधुक्रियाराधने खेदसिन्ना। कुशीला: कुत्सितम्-उत्तरगुणप्रतिसेपया दुष्ट शीलमाचारो येपा ते तथा । ससक्ताः दपिदुग्यादि रिकृतिप्वासक्ताः, यहा-उत्कृष्टाचारिपु-उत्कटाचारिण. शिथिला चारिपु शिविलाचारिग इत्येव रहुरूपरारिणः । यथाच्छन्दाः शास्त्रमर्यादा वि सत्रकार इस समय अध्ययन का उअसहार करते हुए उक्त दोषो के सेवन का फल इस गाथा द्वारा कहते हे-'प्यारिसे' इत्यादि। __ अन्वयार्थ-जो (ण्यारिसे-एतादृश) ऐसा साधु होता हैं वह (पचकुसीलऽसबुटे-पचकुगीलासवृत') पचकुशीलों के समान अनिरुद्ध आस्रव द्वारवाला होता ह । पार्श्वस्थ, अवसन्न, कुशील, ससक्त और यया छन्द ये पचकुशील साधु है । जो अपने आचार मे शिथिल होता है वह पार्श्व है १, साधु क्रियाओं के आराधन करने में जो खेदखिन्न होता है वह अवसन्न है २। उत्तर गुगोंकी, प्रति सेवासे जिसका आचार दुष्ट होता है वह कुशील है ३। दधिदुग्ध आदि विकृतियो मे जो आसतचित्त रहता है अथवा उत्कृष्ट चारित्रियो मे जो उत्कृष्ट चारित्रका पालन करता है, एवं शिथिलाचारियोंके बीच जो शिथिलाचारी बन जाता है इस तरह बहुरूपधारी जो साबु होता है સૂત્રકાર આ સમયે અધ્યયનનો ઉપસંહાર કરતા ઉક્ત દેના સેવનનું ફળ 241 था द्वारा छ-"एयारिसे" त्यादि। __ मन्वयाथ-~2 एयरिसे-एतादृश सेवा साधु डाय छ ते पचकुसीलसवुडे पचकुशीलासरत पाय अशीसनी मा० अनि३५ मारपछारवाणा थाय छ पाथ, અવસગ્ન, કુશીલ, સ સક્ત અને યથાછ દ આ પાચ કુશીલ સાધુ છે જે પોતાના આચારમાં શિથિલ હોય છે તે પાર્થસ્થ છે (1) સાધુ ક્રિયાઓનું આરાધન કરવામાં જે ખેદખિન્ન હોય છે તે અવસન છે (૨) ઉત્તરગુણેની પ્રતિસેવાથી જેને આચાર દુષ્ટ હે ય છે તે કુશીલ છે (૩) દૂધ દહી આદિ વિકૃતિઓમા જે આસક્ત ચિત્ત રહે છે અથવા ઉત્કૃષ્ટ ચારિત્રીઓમાં જે ઉત્કૃષ્ટ ચારિત્રનું પાલન કરે છે અથવા શિથિલા ચારિની વચમા જે શિથીલાચારી બની જાય છે આ રીતે બહુરૂપધારી જે સાધુ
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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