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________________ प्रियदर्शिनी टीमा अ १७ पापश्रमणम्यापम् तथामूलम्--सार फलंग पीढ' निसिज पायकवल। अप्पमजियमारुहंड, पावसमणे-लि वुच्चड ॥७॥ डाया--सस्तार फलक पर, निपद्या पादरम्मम् । ___ अप्रमार्य अनारोत, पापश्रमण इत्युच्यते ॥७॥ . टोरा--य साधु सम्तारम् शयनासनम् , फलक पहादिकम् , पीह-या जोठ' इति भाषा प्रसिद्धम् , निपद्याम्म्या यायभूमि, पाद कम्पल-पादोन्छ नार्य सम्ल = कम्बल बण्ड पादकम्पल तम् जामय वत्र उपलक्षणत्वात मत्रमय पा. जममार्य रजोहरणादिना, उपर पणवादमत्युपेक्ष्य च आरोहति-उपविशति, स पारसमण इत्युच्यते ॥७॥ तथा-- मूलम्-"दवदवस्स चरंड, पमते ये अभिवण । उल्लंघणे य चंडे य, पावसमणे-ति' बुच्चंड ॥८॥ छाया--द्रत द्रुत चरति, प्रमत्तश्च अभीरणम् । उल्लड्यन-ब चण्टश्च, पापमण इत्युच्यते ॥४॥ नया-'मधार' इत्यादि-- अन्वयार्य-जो सार (म फलग पीढ निसिज पायकवलसस्तारम् फलक पीठ निपिन्या पाटकम्रलम्) मस्तारक-शयनासनको फलक-पटक आदिको, पीठ-बाजोठको, निपद्या स्वात्ययभ्रमिको, पादकम्बल-चरणपोउनेका अथवा अामा रोटे वस्त्रको (अप्पजियअप्रमाज्य) रजोहरण आदिसे प्रमार्जित न करके तथा न देव करके इनपर (आमद-आरोहति) बैठता है वह (पारतयणे त्ति बुच्चह-पापत्रमण इत्युच्यते) पापश्रमण ऐसा कहा जाता है ॥७॥ तथा 'सधार" त्यान्।ि सन्या--- साधु सथार फलग पीढ निसिज्ज पायकल-सम्तारम फस पिठ निपद्या-पादरम्परम् सस्ता-शयनासनने, ५०४-५४४ महिने, पीબજેટને નિષવા-સ્વાધ્યાય ભૂમિને, પાદડમ્બલ–પગલુ છવાના ઉમય નાના વસ્ત્રને, मा सुतरना नाना पचने अप्पमनिय-अप्रमाज्य ने ७२५१ माहिती प्रभात नशन तवा न तानने सेना ५२ आरहा--आरोहति मेसे छे ते पावसमणेत्ति बुच्चद-पापत्रमण इत्युच्यते ॥५श्रम से उडपामा २मा छ ॥७॥
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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