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________________ - - प्रियाशिनी टीका अ. १६ दाविधाह्मचर्यममाविम्याननिम्पणम टीका-'कटय' इत्यादि। ब्रमचयरतो भिनुः कुडपान्तरादिषु स्थितः सन योग्राद्य-श्रयणेन्द्रियविषय वीणा-बीसम्बन्धि जित रुदित गीत इसित स्तनित कन्दित व विर्जयेत् कृजितादयः पूर्व व्याग्याता ॥५॥ || इति पञ्चमम्मानम् ॥ मम्-हांस खिंदु रह दंप्प, सहसापत्तासियाणि यं । वभचेररओ थीण, कयाइवि नाणेचिते ॥६॥ छाया-टाम कीडा रनिं दप, महसाऽवनासितानि च । ब्रमचर्यरत चीणा, नानुचिन्तयेत्वदाचिदपि ॥६॥ टीका--'हाम' इत्यादि । ब्रह्मचर्यरत. मातु स्त्रोणा स्त्रीसम्बन्धि हाम-हास्यम् , क्रीडा-यूतक्रीडाम् , 'ऋडय' इत्यादि अन्वयार्थ-जो साधु (पभचेररओ-ब्रह्मचर्यरत') अपने ब्रह्मचर्य व्रत की रक्षा करने मे मर्वथा उपयुक्त है उसका कर्तव्य है कि वह भीत जादि की जोट मे हो कर (मोयगिज्ज-योवग्राहाम् ) श्रवणेन्द्रिय के विपरभूत होनेवाले (कृटय सदय गीय हसिय यणियकदिय विवज-कृजित मकिन गीत रसित स्तनित-ऋन्दित पिवर्जयेत् ) स्त्रियों के कृजित शब्द को, नदित शब्द को, गीत को, हसने को, स्तनित नथा क्रन्दित शब्द को रागपूर्वर सुनने का परित्याग करे जिन आदि शब्दों का अर्थ पहिले लिग्वा जा चुका है। यह पचम स्थान है ॥७॥ 'हाम बिटु' इत्यादि अन्वयार्थ (वभचेररओ भिक्खू-ब्रह्मचर्यरतो भिक्षु. ब्रह्मचर्य के पालन करने मे रत बना हुआ सायु (थीण-स्त्रीणाम्) स्त्रीयों के माय पहिली 'कृदय त्या 24-या-7 साधु मचेररमो-ब्रह्मचर्यरत पोताना प्रायनतनु रक्षर કરવામાં સર્વથા ઉપયુક્ત છે તેનું કર્તવ્ય છે કે, તે ભી ત આદિની ઓથે રહીને सोयगिज्ज-श्रोग्राम जानकी माता वियाना गुत्सिs शहोने, हित राण्होने ગીતેને, હામ્યને તનિત શબ્દને, તથા આ દના શબ્દને, ગગપૂર્વક સાંભળવાને પરિત્યાગ કરે કજિત આદિ શબ્દના અર્થ અગાઉ કહેવાઈગયેલ છે આ પાચમુ स्थान छ । 'हास बिडु' छत्यादि मन्वयार्थ -भचेररओ भिक्खू-ब्रह्मचर्यरत. भिसुः ब्रह्मययनु पालन ४२ पामा समान मा माधु वीण-स्त्रीणा श्रीनी सा2 24116 स्वामी मावे हान्य
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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