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________________ ८४० उतरान केशी पृच्छति- मूलम् - अंगी ये इडे के बुत्ते, केसी गोयं ममव्यवी । तंओ के' सिं वैवंत तु, गोयैमो णमव्येवी ॥५२॥ छाया -- अग्नयश्चेति के उक्ताः, केश गौतममत्रवीत् । ततः केशिन न्तु, गौतम दमननी ॥५२॥ टीका -- 'अग्गी य' इत्यादि । अस्या व्याख्या पूर्वपद् ोध्या, नगरम् अग्निमन्नोऽत्र महामेघादि मनोपलक्षणम् ॥५२॥ मूलम् - कसीया अग्गिणो बुत्ता, सुर्येसीलतवो जेल । सुयधाराभिहया सत्ता, भिन्ना हे ने डहं" ति में ॥ ५३ ॥ छाया -- कपाया अग्नय उक्ता, श्रुतशीलतपो जल्म् । धाराभिहता सन्तो, भिन्ना खलु न दहन्ति माम्र | टीका -- 'कसाया' इत्यादि । हे भदन्त ! पाया = कोधाद‌यो दाहकतया शोषकतया च अग्नय उक्ता सीचता हू । ( सित्ता उमे नो दहति सिक्तास्तु माम् न दहति) सो इस प्रकार सिंचित हुए यह अग्नि मुझे नहीं जलाती है ॥५१॥ केशी श्रमण ने इस प्रकार गौतम स्वामी के कहने पर उनसे पुनः पूछा- 'अग्गी य' इत्यादि । इस गाथा में केशिकुमार ने गौतम से ऐसा पूछा है कि है गौतम ! अग्नि क्या है तथा जल क्या है ? तन केशिकुमार के इस प्रश्न का समाधान गौतमने इस प्रकार किया - ॥५२॥ 'साया' इत्यादि । अन्वयार्थ - हे भदन्त । (कसाया अग्गिणो वुत्ता - पाया' अग्नय ) उक्ता० अग्निना सयय सिंचामि - सतत मिञ्चामि उपर सतत छाटु छु तो मे प्रन्थी સિચવામા આવેલ અતિ મને જાવી શકતા નથી નાપા કેશી શ્રમણે ગૌતમ ૨ મીના આ પ્રકારના ઉત્તરથી ફરીને પૂછ્યુ "अग्गीय" छत्याहि ! આ ગાથામાં કેશીકુમારે ગૌતમને એવુ પૂછ્યુ કે, હે ગૌતમ 1 અગ્નિ સુ જળ શુ છે ? ત્યારે કૈશીકુારના આ પ્રશ્નનુ સમાધાન ગૌતમે આ પ્રકારે કાપના " कसाया त्याहि । ८ अन्ययाथ-हे लहन्त ! कसाया अग्गिणो वृत्ता - कपाया अग्नय उक्ता' घाड
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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