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________________ ९३८ उत्तराध्ययनसो पुनः केशी पाह--- मूलम्-साह गोयम ! पंण्णा ते छिन्नो में ससओ डमों। अण्णों वि ससओमझ, त"में' कहसु गोयमा॥४९॥ छाया--साधु गौतम ! मा ते, चिनो मे सशयोऽयम् । अन्योऽपि सशयो मम, त मे कथय गौतम ! ॥१९॥ टीका-'साई' इत्यादि अस्या पूर्ववद व्याख्या गोभ्या ॥४९॥ पुनरपि केशी पृच्छति-- मूलम्-संपनलियाय घोरा, अॅग्गी चिदृइ गोयमा ।। जे डहति सरीरत्था, केहं विझाविया तुमें? ॥५०॥ छाया-सम्मज्वलिताच घारा., अग्नयस्तिप्ठन्ति गौतम !। ये दहन्ति शरीरम्या', विध्यापितास्त्वया ? ॥५०॥ टीका-'सपनलिया' इत्यादि हे गौतम ! सम्पन्चलिता.-ससमन्तात् प्रमाण ज्वलिता, जाज्वल्य माना इत्यर्थः, अत एव घोरा.भयकराः अग्नयस्तिष्ठन्ति-मन्ति । ये नय' शरीरम्पा.-शरीरान्तर्गता'-सन्तो जीयान् दइन्ति-परितापयन्ति । ते अग्नयस्त्वया केशीरमण कहते है- 'साई' इत्यादि। इम गाथा का अर्थ पहिले जैसा ही जानना चाहिये। इसम गौतम स्वामी की प्रज्ञा की प्रशसा की गई है ॥४९॥ केगी ने पुन. गौतम से पूछा-'सपजलिया' इत्यादि।। अन्वयार्थ - (गोयम-गौतम) हे गौतम (सपनलियाय-समज्वलिताथ) समतन प्रकर्षरूप से जाज्वल्यमान अतएव (घोरा-घोरा) घोर ऐसी (अग्गी-अनय ) अग्नि है। (जे सरीरस्था-ये शरीरस्था) यह अग्नि शरीर शी अभा--"साहत्या આ ગાથાને અર્થ પહેલાની ગાથાઓ પ્રમાણે જ જાણવો જોઈએ આમા Aતમ સ્વામીની પ્રજ્ઞાન પ્રથા કરવામાં આવેલ છે જલા शीये थी पूछ - "सपजलिया" प्रत्या अन्वयार्थ-गायम-गौतम गोतम । सपन्ज लिया। य-सप्रज्वलिताश्च समन्तत । ४०३५था careयमान सतमेव घोरा-घोरा धार-लय ४२ मेवी मनि छ जे सरीरस्था डहति-ये शरीरस्था दहन्ति भी मेजिन AN२नी २०६२
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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