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प्रियदर्शिनी टोका अ २३ श्रीपार्श्वनाथचरितनिरूपणम्
एष गौतमस्य वचन श्रुत्वा केगी माह--- मूलम्साह गोयंम ! पण्णा ते, छिन्नो में ससओ इमो ।
अन्नो वि" संसओमः",ते मे" कहसु गोयमा ॥३९॥ गया-साधु!तम ! प्रज्ञा ते, छिन्नो मे सशयोऽयम् । . अन्योऽपि सशयो मम, त मे कथय गौतम ! ॥३९॥ टीका-'माई' इत्यादि। इय गाथा व्याख्यातपूर्या ॥३९॥ केशी यत्प्रोक्तास्तदुन्यते-- मृलम्-दीसति वहवे लोएं, पासबंद्धा सरीरिणी।
मुकंपासो लहुन्भूओ, केह ते विहरसी मुणे ॥४०॥ छाया-दृश्यन्ते वहगे लोके, पागनद्धा शरीरिण ।
मुक्तपायो लघुभूत., कय व विहरसि मुने! ॥४०॥ टीका-'दीसति' इत्यादि ।
हे मुने! हे महाभाग गोनम ! लोके रहव =अनेके शरीरिणः मागिन मै भगवान् की आज्ञानुसार अप्रतिवद्ध विहारी बनकर विचरतो हू ॥३८॥
केशीश्रमण कहते हैं 'साहु' इत्यादि। अन्वयार्थ-(गायम!-गोतम) हेगौतम ! (ते पण्णा साहु-ते प्रज्ञा माध) आरकी बुद्धि अन्छी है क्यों कि आपने (मे इमो ससओ छिन्नो-मे अयम् संशय छिन्न.) मेरे संशय को मिटा दिया है । (अन्नो वि ससओ मज्झ अन्योऽपि सशयो मम) और भी मेरा सशय है (त मे कहय गोयमा-त मे कथय गौतम) सो आप दर कीजिये ॥३९॥
केशी श्रमण ने जो कहा सो कहते हैं-दीसति' इत्यादि। अन्वयार्थ-(मुणे-मुने) हे मुने ! (लोए बहवे पासबद्धा सरीरिणो दिसतिહે મુનિ ! હે ભગવાનની આજ્ઞા અનુસાર અપ્રતિબદ્ધ વિહારી બનીને વિચરૂ છુ ૩૮
शी अम -"साह" त्यादि। अन्वयार्थ --गोयम-गौतम गोतमा ते पण्णासाहु-ते प्रज्ञासा मापना भुद्धि सारी छ १२ माघे में इमो ससओ उिन्नो-मे अयम् सशय छिन्न भा। सशयन मिटावी हीघा जे अन्नोवि ससओ मज्झ-अन्योऽपि सशयो मम 4जी भने भाले ५ सय छ त मे कहय गोयमा-त मे कथय गौतम તેને આપ દૂર કરો આટલા
अशी श्रमणेरे यु तेरे ४९ -"दीसति" त्यादि। सन्याय-~-मुणे-मुने उ भुनि ! लोए वहवे पासवद्धा सरोरिणो दिसति