SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 989
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भोगपरित्यागाऽशस्यत्वे फारणमाद हत्थिणपुरम्मि चित्ता ! दगुण नैरवइ महिइढिय । कामभोगेसु गिद्धेण, नियाण मंसुह केड ।। २८ ॥ तैस्स "मे अपेडिकतस्स, इम ऐयारिस फेल । जाणमोणे वि"ज" धम्म, कामभोगेसु मुच्छिओ ॥२९॥ छाया-हस्तिनापुरे चित्र ! दृष्ट्वा नरपति महर्दिकम् । कामभोगेपु गृद्धेन, निदानमशुभ कृवम् ॥ २८ ॥ तस्य मेऽप्रतिमान्तस्य, इदमेताश फलम् । जाननपि यदर्म, कामभोगेपु मूतिः ॥ २९ ॥ टीका-'हत्यिणपुरम्मि' इत्यादि। हे चित्र हे चिनमुने ! जन्मान्तरीयसम्कारेणेद सोधनम् , हस्तिनापुरे महर्दिक नरपति-सनत्कुमार नामान दृष्ट्वा, कामभोगेपु गृढेन लोलुपेन मया तदानीमशुभम् अशुभानिवन्धि-निदान कृतम् ॥ २८॥ ' तस्स मे' इत्यादि। जितना सर्वथा अशक्य है ॥२७॥ भोगोंका जितना अशक्य क्या है इसका वह चक्रवर्ती कारण बतलाते है-'हत्यिण पुरम्मि' इत्यादि। अन्वयार्थ (चित्ता-चित्र) हे चित्रमुने ! (हत्यिणपुरम्मि महिडिय नरवह दट्टण-हस्तिनापुरे मर्दिक नरपतिं दृष्ट्वा) मैंने सभूतमुनिके भवमें सनत्कुमार चक्रवर्तिको महाऋद्धिस पन देखकर (कामभोगेसु गिध्धेणे कामभोगेषु गृध्धेन) कामभोग में गृद्ध बनते हुए उस समय (असुह नियाणम्-अशुभ निदानम् ) अशुभ निदान (कड-कृतम्) किया-यद्यपि ઉદયમા એ અમારા જેવા જ દ્વારા છેડાવા સર્વથા અશક્ય જ છે પરા ભોગેનો પરિત્યાગ અશક્ય કેમ છે એનું ચક્રવર્તી કારણ બતાવે છે – " हत्थिण पुरम्भि" त्यात! __-क्यार्थ-चित्ता-चित्र , त्रिमुनि ! इत्थिण पुरम्मि महिढिय नरवइ दळूण-हस्तिनापुरे महर्द्धिक नरपतिं दृष्टवा में सभूत मुनिना सभा सनत्भार यति मारिद्धिस पन्न धन कामभोगेसु गिध्धेण-कामभोगेषु गृध्धेन म मोसमा गृद्ध मनीन मे मत असुह नियाणम्-अशुभ निदानम् अशुभ निधान कड-कृतम् ४यु मे मते साये भने मे प्रमाणे ४२७ तारे भाटे यत
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy