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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ० ४ गा० ६ प्रमादाभावोपदेश सगं न कुर्यादित्यर्थः । यद्वा-सुप्तेषु द्रव्यती निद्रितेषु भारत' धर्म प्रत्यजाग्रत्सु, ससारिजीनेषु, 'मुत्ता अनुणी मया ' इति ( आचा० ) वचनात् प्रतिजीनी - प्रतियुद्ध - द्रन्यतोऽल्पनिद्रत्वात् भारतो धर्म प्रति मदा जागलस्त्वात् सयमी तादृशो भूत्वा जीवत्येrगील: । 'मुणिणो मया जागरति ' इति ( आना० ) वचनात् प्रतिद्धजीवी मन किं शर्यादित्याह - 'न वीससे' इत्यादि । न विश्वसेव = प्रमादेषु प्रवृत्ति न कुर्यात् । " मु. = कालविशेषा, दिसाधुपलभणमेतत् घोरा =माणापारकलात् मय रान्ति, शरीरम् - अन= रहितम् अस्ति । मृत्युदाय कानू मुहूर्त्तान निग सोनारीग्मसमर्थमस्तीत्यर्य, मुहूर्ता घोगः मन्तीति निदित्वा किं कुर्यादित्याह सुतेसुन जीससे प्रतिबुद्धजीनी सुप्तेषु न विश्वसेT) "मुक्ता अनुणी सरा मुणिगो या जागरति ” “ मलारी सदा सोने रहते हैं और मुनि सदा जागरित रहते है" इस आचारागनून के वचनानुसार द्रव्यकी अपेक्षाअ पनिद्रा लेने वाला होनेसे, मान की अपेक्षा धर्म के प्रति सदा जागरूक होने से जीनेवाला सभी मुनि सुप्तो मे अप्रमादों मे प्रवृत्ति न करे। यह भी अर्थ हो सकता है । पहिले जो सुप्त शब्द का अर्थ " द्रव्य की अपेक्षा निद्रित एव भाव की अपेक्षा धर्म के प्रति अजागरूक से ससारी जीवों में " ऐसा लिया गया है वह भी ' सुत्ता अमुणी सया " मसारी सदा खुस है, इस आचारागमत्र के वचनानुसार लिया गया है । (मुहुत्ता घोरा मुहूर्त्ता घोरा. ) मुहर्त्त दिवम आदि कालविशेष प्राणापहारक होने से भयकर है, और ( सरीर अनल - शरीर अनल ) अमुणी सया, मुणिणो सया जागरति " “ મમારી સાસુતા રહે છે અને મુનિ सही लगता रहे " આ ચારાગસૂચના વચન અનુસાર દ્રવ્યની અપેક્ષાએ અલ્પ નિદ્રા લેવાવાળા હેાવાને કારણે તથા ભાનની અપેક્ષાએ ધમના પ્રતિ સદા જાગૃત હોવાને કારણે સયમી મુનિ પ્રમાદ સેવવામા પ્રવૃત્તિ ન કરે એ પણ અથ થઇ રાકે છે પહેલા જે ગુપ્ત રાખ્તના અને દ્રવ્યની અપેક્ષાએ નિદ્રીત અને ભાવની અપેક્ષાએ ધર્મપ્રતિ અજાગૃત એવા મસારી વામા” એવુ કહેવામા ન્યુ કે તે પણ सुत्ता अमुणी सया " ' स सारी महा सुतेा ” मे भाया राग सूचना पथन अनुसार सेवामा आवे छे मुहत्ता घोरा- मुहूर्त्ता घोरा भुहूर्त, द्विषय माहि जाण विशेष प्राथाडारड होवाथी लय ४२ हे भने सरीर अवलશી અવરુ શરીર ખળ રહિત છે-અર્થાત આ શરીર મૃત્યુદાયક એ મુહૂર્ત 66
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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