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________________ ६३५ चराध्ययन किम् ' किंवा ते तव मते ज्योतिः स्थानम् अग्निकुण्डम् ? तथा-ते तव मते वा अग्नौ घृतादिप्रक्षेपिका दयः काः ? किं वा ते-तव मते, करीपागम्अग्निप्रज्वालनसाधन शुष्कगोयमखण्डम् ? च पुनस्ते तब मते कतरे के एधाः समिधः? तथा शान्तिम्यापोपशमनहेतुरध्ययनपद्धति का? तथा त्व कतरेण केन होमेन-हवनीयद्रव्येण-आहुत्येत्यर्थः, ज्योतिरग्नि जुहोपि-तर्पयसि ? अयं भाव:पइजीनकायारम्भसाध्यो यज्ञस्तदुपकरणानि च त्वया निषिद्धानि, तत्कय तत्र यज्ञसभव ? इति ।। ४३॥ किम् ) कौन सी अग्नि है (वा) तथा (ते) आप के वहां (जोईठाणं केज्योति स्थान किम् ) अग्निकुड क्या है (ते) आपने (सुया का-सुवः कः) अग्नि मे हव्य को प्रक्षेपण करने के विये युवा किस को बताया है। (करिसग किं-किवा ते करिपाङ्गम् ) किसे आपने अग्नि को प्रज्वलित करने के लिये शुष्कगोमय के स्थानापन्न माना है (पहा य ते कयराएधाश्च ते कतरे) किस को आपने इसमें जलाने के लिये इन्धनस्वरूप बनाया है (सतिका-शातिः का) तथा पापोपशमन की हेतुभूत अध्ययन पद्धति वहा पर क्या है और (कयरेण होमेण जोइ हुणासि-कतरेण होमेन ज्योतिः जुहोपि) किस हवनीय द्रव्य से आपके समत उस यज्ञ को करते हो । वह सब ब्राह्मणों ने मुनिराज से इस लिये पूछा कि प्रसिद्ध यज्ञ तो षट्जीवकायके आरम्भ से साय होता है और उसको करने का आप निषेध करते हो तो आप जिस यज्ञ को करने का विधान कर रहे हो वह भी साध्य कैसे हो सकता है ? कारण के यज्ञ करने के सय ही उपकरण आपकी दृष्टिमें हेय हैं ॥४३॥ यज्ञमा मापना भतथी जोइ के-ज्योति किम् अशिया छ ? वा तय ते मापन त्याजाइठाण के-ज्योति स्थान किम् अनिवा१मापने त्या सुया का-सुव क मनिमा व्यने प्रक्षेपण ४२पा भाटे ५२ मताव छ १ कारिसग कि-किंवा ते ઋષિન્ અગ્નિને પ્રદીપ્ત કરવા માટે કેને શુષ્ક ગોમયના સ્થાનાપન્ન માનેલ छ १ एहा य ते कयरा-एधाश्च ते कतरे सेमा पापा भाट ने धन २१३५ मनावत छे तथा सति का-शाति का तथा पापापशमनन तुभूत अध्ययन परत त्या ? म कयरेण होमेण जोइ हुणासि-कतरेण होमेन ज्योति gધષિ કયા હવનીય દ્રવ્યથી આપને સ મત એ યાને કરો છો ? આ સઘળી વાતે બ્રાણાએ મુનિરાજને એ માટે પૂછી કે, પ્રસિદ્ધ યજ્ઞ તે જીવની કાયના આર ભથી સાધ્ય બને છે અને એવા યજ્ઞને કરવાને તે આ૫ નિષેધ કરે છે તે આપ જે યજ્ઞને કરવાનું વિધાન કરી રહ્યા છે તે પણ સાધ્ય કઈ રીતે થઈ શકે? કારણ કે યજ્ઞ કરવાના સઘળા ઉપકરણ આપની દૃષ્ટિમાં હેયે છે ૪૩
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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