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________________ पीयूषषिणी-टीका स ७५ क्यलिममुरातयिषये भगवद्गीतमयो सबाद ६७१ ___ मूलम्-देवे ण महडिए महजुइए महव्वले महाजसे महासोक्खे महाणुभावे सविलेवण गधसमुग्गय गिण्हड, गिण्हित्ता त अवदालेइ, अवदालित्ता जाच इणामेवन्ति कह केवल ___टीका-'देवे ण' इत्यादि । 'टेवे ण' देव खलु 'महडिए' महर्दिक = विपुलैश्वर्ययुक्त , 'महज्जुइए' महाधुतिक =महातेजस्यो, 'महब्बले महाजसे' महागलो महायगा 'महासोक्खे' महासौग्य -महासुसा, 'महाणुभावे' महानुभाव , 'सविलेवण' सनिलेपन 'गरसमुग्गय' गधसमुद्गक गध-पुटक 'गिण्हड' गृह्णाति, 'गिण्डित्ता' गृहाना त-गधसमुद्गमम् 'अबदालेड' अदालयति-उद्घाटयति, 'अवदालित्ता' अवतान्यउद्घाट्य, 'जाव दणामेवत्ति नदु' यावत् इदमेवमिति कृत्वा, यह यावच्छन्द परिमाणा कस्तापढित्यस्य सापेक्ष , द-गमनम्, एवम् =छोटिकारय यावता कालेन भवति ताव काविष्कभवाला है । इसकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोग एकसौ अट्ठाईस धनुप साडे तेरह अगुल से कुछ अधिक है । उससे यह परिवेष्टित है।सू ७४॥ __'देवे ण महिए' इत्यादि। (महडिए) महारुद्धि का धारा (महबले ) महानलिष्ठ (महाजसे ) अतिशय यशस्वी (महासोक्खे) अयतसौरयवाले (महाणुभावे ) एव अत्यत प्रभावशाली एसा कोइ (देवे ण) देव (सविलेवण गधसमुग्गय) रिलेपनसहित एक गध के समुद्गक (पेटो) को (गिण्हद) लेने, (गिण्हित्ता) और लेकर उसे (अवदालेद) वहीं पर सोले, (अत्रदालित्ता) खोलकर (जाव इणामेबत्ति कटु केवलकप्प जवुदीव दीव) પિળે છે તેને પરિઘ ત્રણ લાખ ળ હજાર અને સત્તાવીશ જન ત્રણ દેશ એ અઠાવીસ ધનુષ અને સાડા તેર આગળથી જરા વધારે છે તે એટલા ઘેરાવામાં છે (સ્ત્ર ) 'देवे ण महड्डिए' त्यादि ( महडिए) भद्धिन! भाग ( महत्वले) भामलित (महाजसे) मातिशय यशस्वी (महासोरखे) सत्यत सौम्यपणा (महाणुभावे) तमन सत्यत प्रलापशाली सेवा ई (देवे ण) व (सविलेषण गवसमुग्गय) विवेपन सहित : समुहा (सुगद्रव्यनी पेटी) ने (गिण्हइ) दीये, (गिण्हित्ता) मने बने तन (अवदालेइ) त्या धाड, (अवदालित्ता) Suीन (जाव इणामेवत्ति कट्ट केवलकप्प जवुद्दीन दीव) ते सभस्त । मूदी
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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