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________________ पीयूषषिणी-टीका मृ६. याममितादि विपये मगवद गौतमयो म्याद ६३ कालमासे कालं किच्चा, उक्कोसेणं सम्वसिद्ध महाविमाणे देवत्ताए स्ववत्तारो भवति, तर्हि तेसिं गई, तेत्तीम सागरोवमाइ ठिई, आराहगा, सेसं तं चेव ।। सू०६८ ॥ मनुमबमाविना वा अचा-तनुर्येषा त एकाचा 'पुण' पुन , अत्र पुन मर उजाया जा पेलण्यधाननार्य , 'गर्ग एक-अन्य तु 'मरतागे भकार: मरमविन , 'मयनाग हरआनुवार आपवान 'पुत्रसम्मावमेमेग' पूर्वक्रमावर्गग पूर्वतर्मगामवारेग काठमाने काल किया बालमामे काल कृत्वा-'टक्कामंग मट्टमिट्टे महाविमाणे' इकडेंग स्वार्थमिद्रे महाविमान 'देवताए' देवचेन 'उबवत्तारी मवति' उपपनागे भवन्ति-पद्यन्ते, 'तहि तसि गई तेचीम मागरोवमाइ ठिर्ट' तत्र तेषा गति , पनिंग नागगेपमानि स्थिति । 'याराहगा आपका परकम्यागका , 'ममत चर' टोय तुटेच ॥ 3641 हैं कि जिन्ह उसी मव में कवन्द्रमान एव वहन का नाम न्हा इत्ता ? नो प्रेम व अन्गार भगवान् (एगचा) पमवारता हेले है। रे (भरतारो) स्यम का आगमना ऋग्ने छ ही (पुन्चसम्मावमसेण) पूर्वक्रम के माविष्ट होन के (रमाम काटं किया) काल म्बसर म काट कर (रकामेग)स्कर्ष है (मचट्टमिंद महात्रिमाणे देवताए उववचारो मत्रनि) मवाय मुद्र नामक माविमान म देवपवाय से पन हो व्यने है। (तहि नमि गई, तिचीम मागरीवमाट) बदी पर उनकी गति और स्पिति होता है। इनका स्थिति वहाँ पर तीन सागर प्रमाग है। (बाराहगा मंमत चेत्र) ये नियम में परलोक के आरामक होते हैं । अगिष्ट पूर्ववत समझना चाहिये। म् १८॥ ભગવાન હોય છે કે જેમને તેજ ભવમા કેવળજ્ઞાન તેમજ વજનને લાભ મળને નથી તે એવા તે અનગાર ભગવાન ( જા) એ-બવાવતારી हाय ३ तेया (भरनारो) अयमनी नाना ता . (पुत्रमारसेसेणे) भना मात्र स्वाना दान (काठमासे काल किच्चा) cla-१सरे sta गन (कोसेण) Eat (मन्त्रमिद्धे महारिमा यत्ताए अर. तारो मानि) वारि नामना महाविमानमा १५यानी C-पन्न भय ત્યાં તેમની ગતિ અને રિતિ હોય છે તેમની ત્યા નિયતિ તેત્રીસ સાગર प्रमाण (याराहगा सेमंत चेय) तभी नियम पहना मागासीय છે, બાટી બવું ઝાડ પ્રમાણે સમજવું જોઈએ (. ૮).
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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