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________________ - ९५८ जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जजोगोवहिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा कजति तओ वि पडिविरया जावजीवाए ॥सू०६४ ॥ मूलम्-से जहानामए अणगारा भवंति-ईरियासमिया भासासमिया जाव इणमेव निग्गंथं पावयणं पुरओ काउ विहरति ॥ सू० ६५ ॥ तहप्पगारा' ये यावतस्तथाप्रकारा , 'सावज्जजोगोवहिया' सावधयोगोपधिका -सावय योगा सावधयोगयुक्ताश्च ते औपधिका =मायाप्रयोजनाश्चेति तथा, 'परपाणपरियावणकरा' परप्राणपरितापनकरा , 'कम्मता' कभीगा =व्यापाराशा 'कज्जति' क्रियते 'तओ वि पडिविरया जावजीवाए' ततोऽपि प्रतिविरता यावजीवम् ॥ सू ६४॥ टीका-' से जहानामए' इत्यादि। ' से जहानामए अणगारा भवंति' अथ यथानाम केचित् अनगारा भवन्ति, कीदृशास्तेऽनगारा ' इत्याह 'ईरियासमिया' ईयास होते है, (जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जजोगोवहिया कम्मता परपाणपरियावणकरा कन्जति तो वि पडिविरया जावज्जीवाए) तथा इसी प्रकार के और भी जो सावधयोगवाले मायाकषायजनित कार्य है कि जिनमे प्राणियों के प्राणों को परिताप जय कष्ट भोगना पडता है उन सब से ये प्रतिविरत होते है । सू ६४ ॥ " से जहानामए' इत्यादि । (से जहानामए अणगारा भवति) ये जो अनगार होते है, वे( ईरियासमिया भासासमिया जाव इणमेव निग्गथ पावयण पुरओ काउ विहरंति) इर्यासमिति, भाषा ३५, गध, भाता तभक स शथी रहित खाय छ (जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जजोगोवहिया कम्मता पर-पाण-परियावण-करा कज्जति तओ वि पडिविरया जावज्जीवाए) तथा से मारना मीत पY२ सावधयोगवा मायाषायनित કાર્ય છે કે જેમાં પ્રાણિના પ્રાણને પરિતાપજનિત કઈ ભેગવવા પડે છે, તેવા બધા કાર્યોથી તેઓ વિરકત હોય છે (સૂ ૬) ' से जहानामए' त्या (से जहानामए अणगारा भरति) मा अनार डाय छ, तमा (ईरियासमिया भासासमिया जाव इणमेव निग्गथ पावयण पुरओ काउ विहरति) ध्यासमिति,
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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