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________________ - - यूषषिणी टोका म ६८ अनारम्भादिमनुष्य विषये भगवद्गीतमयो साद ६५७ पडिविरया, सवाओ आरंभसमारभाउ पडिविरया, सयाओं करणकारावणाओ पडिविरया, सव्वाओ पयणपयावणाओ पडिविरया,--सव्वाओ कोण-पिट्टण-तज्जण-तालण-बह-बंधकिलेसाओ पडिविरया, सव्वाओ पहाण-मदण-वण्णग-विलेवण-सह-फरिस-रस-रूव-गध-मल्ला-लकाराओ पडिविरया, भसमारभाओ पडिविरया' सस्मादारम्भममारम्भाप्रतिषिरता 'सव्वाओ करणकारा रणाओ पडिविरया' सर्वस्माकरगकारणाप्रनिनिता , 'सबाओ पयणपयाणवाओ पडिविरया' सर्वम्मापचनपाचना प्रतिपिरता , 'सव्याओ कुटण-पिट्टण-तज्जणतालण-चह-वध-परिकिलेसाओ पडिविरया' सर्वस्माकुट्टन-पिट्टन-तर्जन-ताडनवर-वध-परिक्लेगात्प्रतिपिरता, 'सव्वानो पहाण-मदग-वण्णग-विलेवण-सहफरिस-रस-स्व-गध-मला-लकाराओ पडिरिरया' सर्वस्मात् स्नान-मर्दन-वर्णकविलेपन-गन्द-स्पर्श-रस-रूप-गन्ध-माल्याऽ-लदारात्प्रतिपिरता, तथा 'जे यावण्णे आरमममारभ से प्रतिपिरत होते हैं, (सबाओ करणकारावणाओ पडिविरया) समस्त करण एव करावगसे-करने-करान से गिरक्त होत हे, (सबानो पयणापयावणाओ पडिविरया) सर्व प्रकार की पचन एव पाचन क्रिया से प्रतिपिरत होते है, (सव्वाओ कोहणपिट्टण-तज्जण-ताल्ण-बह-य-परिकिलेसाओ पडिविरया) समस्त प्रकार के कुटण, पिट्टण, तर्जन, ताडन, वध, नथ, परिक्लेश से रिक्त होते है, (सव्वानो ण्हाण-मदणवण्णग-विलेषण-सद्द-फरिस-रस-रूब-गर-मल्ला-रकाराओ पडिविरया) सपूर्ण स्नान, मर्दन, वर्णक, निलपन, गन्द, रूप, गा, रस, स्पर्श, मान्य एव अलकारों से रहित २लथी प्रतिवित हाय , (सव्याओ करणकारावणाओ पडिपिरया) समस्त ४२५ तेभर साथी-४२१-४२११पाथी वि४ डायचे (सव्याओ पयणपयावणाओं पडिविरया) प्रजारनी पयन तमा पायन याथी पि४त य छ (सन्चाओ कोट्टण-पिट्टण-तन्जण-तारण-चह-वध-परिकिलेसाओ पटिविरया) સમસ્ત પ્રકારના કુટ્ટણ, પિટ્ટણ, તર્જન, તાડન, વાવ, બ વ, પરિકલેશથી વિરકત હેય छ (सव्याओ ण्हाण-मदण-चण्णग-निलेरण-सद-फरिस-रस-रूप-गध-मल्ला-लफाराओ पडिरिया) से पूए स्नान, मन, व, विलेपन, ५०६, २५, २८,
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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