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________________ ६५२ औषपातिकतो सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चरखाण-पोसहो-बवासेहिं चउदसमुदिपुण्णमासिणीसु पडिपुण्ण पोसहं सम्म अणुपालेता 'अगुयदुवारा अपावृतद्वारा दानार्थमयिभ्य उदघाटितद्वाग इत्यर्थ , 'अवगुय' इनि देशीय शब्द , 'चियत्ततेउरघरम्परेसा' स्यक्तात पुरगृहप्रपया -यक्त मी या प्रदत्त , अत पुरे या गृहे वा प्रवेशो येपा ते तथा, अतिधार्मिकतया सर्वत्रानाशाहनीया दयर्थ । ते कथभूता विहरती याह-' चउद्दस-दुमु-विद्व-पुण्णमासिणीसु' चतुर्दश्यष्टम्युदिष्टापोणेमासीपु 'वहूहि' बहुभि , 'सील-च्चय-गुण-रमण-पचरखाण-पोसहो-ववासेहि' शीलवत-गुण-विरमण-प्रत्यारयान-पोषधो-पवासे -अस्य व्यारयाऽवोत्तरार्धे त्रिषष्टितमे सूत्रेऽवलोकनीया। चतुर्दस्यष्टम्युदिष्टापौर्णमासीपु-इह-'उहिष्टा' इत्यनेन अमावास्या गृह्यते । __ मणि के समान निर्मल रहा करता है । (अपगुयदुवारा) उनके घर के दरवाजे सदा दान के लिये खुले रहा करते हैं, (चियस-तेउर-घर-पवेसा) राजा क अत पुर में भी इनको आने-जाने की कोई भी रोक-टोक नहीं होती है । (प्रहहिं सील-ब्धय-गुण-वेरमणपञ्चक्खाण-पोसहोववासेहिं चउइसद्वमुदिट्ठपुण्णमासिणीमु) 'शील' गन्द से सामायिक, देशावकाशिक, पोपध, अतिथिम्पविभाग ये चार लिये जाते है। 'वत' से पाच अणु वत, गुण से तीन गुणवत लिये जाते हैं। विरमण-मिथ्याव से निवृत्त होना, प्रत्याख्यान-पर्वदिनों मे निषिद्धवस्तुका त्याग फरना । पोषधोपनास-(पोप धत्ते) उस व्युत्पत्ति से धर्म की वृद्धि को जो करता है वह पोपध कहलाता है, अर्थात् चतुर्दशी, अमावास्या, अष्टमी, पूर्णिमा, ये पोषध कहलाते है, इन पर्वदिनों में आहार, शरीरसत्कार, अग्रह्मचर्य, और सावद्यव्यापार इन चारों मलिना 24 निभा २छ। ४२ छ, (अवगुयदुवारा) तभना धरना ४२वाल सहा हान भाटे Gधा. २ह्या उ२ छ (चियत्ततेउरघरप्पवेसा) शतना मत - પુરમા પણ તેમને આવવા-જવાની કોઈ પણ જાતની રોક-ટેક થતી નથી, (पहूहि सील-व्वय-गुण-वेरमण-पन्चरसाण-पोसहोववासेहिं चउद्दसमुट्ठिपुण्ण मासिणीसु) 'शी' शथी सामायिड, शाशित, पोषध, मतिथिसवि ભાગ, એ ચાર સમજવાના છે “વત’થી પાચ અણુવ્રત, ‘ગુણથી ત્રણ ગુણ વ્રત લેવાના છે, વિરમણ-મિથ્યાત્વથી નિવૃત્ત થવુ, પ્રત્યાખ્યાન-પર્વના દિવ सोमा निषिद्ध पस्तुना त्याग ४२वा भाषापास-(पोप धत्ते) मा व्युत्पत्तिथा ધર્મની વૃદ્ધિને જે કરે છે તે પિષધ કહેવાય છે, અર્થાત ચતુર્દશી, અમાવાસ્યા, અષ્ટમી, પૂર્ણિમા, એ પિષધ કહેવાય છેઆ દિવસોમા-પર્વ દિવસોમાં આહાર, શરીરસત્કાર, અબ્રહાચર્ય અને સાવઘવ્યાપાર એ ચારેયને ત્યાગ
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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