________________
पीयूषयषिणी टीका र ६२ अल्पारम्भादिमनुष्य विषये भगवद्गीतमयो सयाद ६४३ माणाओ मायाओ लोहाओ पेजाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ पेसुण्णाओ परपरिवायाओअरहरईओ मायामोसाओ मिच्छादसणसल्लाओ पडिविरया जावजीवाए, एगचाओ अपडिविरया, एगच्चाओ आरंभसमारंभाओ पडिविरया जावज्जीवाए, यावपरिग्रहात् , यावरन्देन-मृपावानाडत्तादान-मैथुनानि बोद्धन्यानि । 'एगचाओ' एकस्मात्-न्थूलात् 'कोहाओ' क्रोधात् , 'माणाओ' मानात् , 'मायाओ' मायाया , 'लोहाभो !
लोभात् , 'पेज्जाओ' प्रेयस , 'दोसाए ' द्वेषात् 'फलहाओ' कलहात् 'अभक्खा_णाओ' अभ्यारयानात्=पैशुयात्, ‘परपरिवायाओ' परपरिवादात् ' अरदरईओ'
अरतिरतिभ्याम् ‘मिन्छादसणसलाओ' मिथ्यादर्शनगल्यात् 'पडिविरया' प्रतिविरता = भावतो पिरता 'जावनीवाए ' याजाव जीवनपर्यन्तम्, ‘एगचाओ अपडिविरया' एकस्मात्-सूक्ष्मात् अप्रतिविरता 'एगचाओ आरभसमारभाओ पडिविरया जावनीवाएं एगचाओ अपडिविरया' एकस्मादारम्भसमारम्भात्प्रतिपिरता यावजीवमेकस्मादप्रति
पडिग्गहाओ) तथा इसी तरह स्थूल मृपावाद, स्थूल अदत्तादान, स्थूल मैथुन एवं स्थूल परिग्रह से विरक्त रहते हैं वे, (एगचाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोहाओ पेज्जाओ दोसाओ फलहाओ अभक्खाणाओ पेमुण्णाओ परपरिवायाओ अरदरईओ मायामोसाओ मिन्डादसणसहाओ पडिविरया जावनीवाए ) इसी प्रकार स्थूल क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, क्लह, अभ्यारयान, पेशुय, परपरिवाढ, अरति, रति, मायामृपा, एवं मिथ्यादर्शनगन्य से जीवनपर्यत प्रतिविरत रहा करते हैं, (एगचाओ अपडिविरया) किन्तु सूक्ष्म क्रोधादिकों से प्रतिविरत नहीं रहते है, (एगच्चाओ आरभसमारभाओ पडि
पडिग्गहाओ) तथा ग्रेवी शत स्थूटा भृयावा, स्थूदा महत्ताहान, स्थूस भैथुन, तभ०४ न्यूस परियडया २ वि२४त २९ छ तसा, (एगचाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोहाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अभिस्साणाओ पेसुण्णाओ परपरिवायाओ अरइरईओ मायामोसाओ मिच्छादसणसल्लाओ पडिविरया जावज्जीवाए) मे सारे २५स जोध, भान, माया, सास, श, द्वेष, ४९, मस्याज्यान, पैशुन्य, ५२परिपाई, अति, रति, भायाभूषा, तेभर भिथ्याशनशक्यथा वनपर्यन्त प्रतिविरत २छा 3रे छे, (एगच्चाओ अपडिविरया) ५२तु सूक्ष्म ओष माथि प्रतिविरत २हेता नथी. (एगचाओ आरम