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६२४ - निंदणाओ गरहणाओ तालणाओ तजणाओ परिमवणामो पव्वहणाओ उच्चावया गामकटगा वावीसं परिसहोवसम्गा आहे. 'जारजातोऽसि' इत्यादिरूपा , इत्यर्थः । 'खिसणाभो' विस-लोकसमक्ष ममोदघाटनम्, 'निंदणाओ' निन्दना मनसा जुगुप्सा, 'गरहणामो' गर्हणा =समक्षे क्रियमाणा जुगुप्सा , 'तालणाओ' ताडना चपटादिदानानि, 'तजणाओ' तर्जना अगुल्यादि प्रदर्शनपूर्वक कटुवचनकथनानि, 'परिभवणाओ' परिमावनास्तिस्कारा , 'पञ्चहणाओ' प्रव्यथना-पीडोत्पादना, 'उच्चारया' उद्यायचा =अनेकविधा , 'गामकटगा' प्राम फण्टका,-ग्राम समूह ,स चेद्रियाणामिह प्रकरणवशाद् गृह्यते, इन्द्रियाणा प्रतिकूला शब्दादय इन्यर्थ , 'वावीस परीसहोवसग्गा' द्वाविंशति परीपहोपसर्गा 'अहियासिज्जति' अधिसहिप्यते, 'तमट्ठमाराहिता' तमर्थमाराध्य आमफल्याणरूप तमर्थ साधयित्वा 'चरिमेहिं उस्सासणिस्सासेहिं ' चरमैरुच्छ्वासनि श्वासै सिमिहिति' सेत्स्यति के समक्ष अपने मर्मों के उद्घाटनों का, (जिंदणाओ) अपने प्रति लोगों के मानसिक घृणाओं का, (गरहणामओ) लोगों द्वारा प्रत्यक्षरूप से की गयी घृगाओं का, (ताल णाओ) थप्पड आदि की ताडना का, (तज्जणाओ) अगुली-निर्देश-पूर्वक कहे हुए कटु वचनों का, (परिभवणाओ) तिरस्कारों का, (पन्वहणाओ) पीडाजनक परिस्थितिया का, (उच्चावया) अनेक प्रकार के, (गामस्टगा) इन्द्रियों के प्रतिकूल शब्दादिको का, (घावीस परीसहोवसग्गा) बाईस प्रकार के परीषहों का, एव परकृत उपसगों का (अहियासिज्जति) सहन किया जाता है, (तममाराहिता) वे दृढप्रतिज्ञ केवली भग । वान् उस आत्मकल्याण रूप अर्थ को आराधित करके (चरिमेहिं उस्सासणिस्सासेहि) દ્વારા થતી ખીજવણીનુ-લેકે સમક્ષ પિતાની માર્મિક વાતને પ્રકાશ थाय तनु, (जिंदणाओ) पोताना प्रति सोनी भानसि४ घामानु, (गरहणाओ) atथी प्रत्यक्ष३थे रायसी यासानु, (तालणाओ) २५६-माहिधी भार भावानु, (तजणाओ) माजी सीधीन ४९८ पयनानु (परिभवणाओ) ति२२४ारानु, (पव्वहणाओ) पीन परिस्थितिमानु, (उच्चावया) मन
रना (गामकटगा) द्रियाने प्रति शvg माहिनु, तथा (बावीस परीसहोवसम्गा) मावीस मारना पशबहानुभन मीन रे। सोनु (अहियासिज्जति) सहन राय छ (तमद्रमाराहिता) प्रतिपक्षी लग दोन तमाम या३५ मन भाराधित ४२२ (परमेहिं उस्मास-णिस्सा सहा मन्तिम पास-निवासाथी (सिज्झिहिति) इतकृत्य यई ४