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________________ ६.० - - - भोपातिकको बोहि बुज्झिहिति, बुज्झित्ता अगाराओ अणगारियं पन्वइहिति ॥ सू० ५२॥ ' मूलम्-से णं भविस्सइ अणगारे भगव मिए जाव गुत्तवभयारी ॥ सू०५३॥ टीका-'से ' इयादि । 'से ण' स दृढप्रतिा सल 'तहारूवाण' तथारू पाणा-सम्यग्नानादिसम्पन्नाना 'येराण' स्थनिराणाम् , 'अतिए' अन्तिके-समीपे 'केवल घोहिं केवला योधि-विशुद्ध सम्यग्दर्शन 'युज्झिहिति' भोत्स्यते-जास्यति, अनुभविष्यती त्यर्थ , 'युज्झित्ता' बुद्ध्वा 'अंगाराओ' अगारात्-गृहात-गृह परित्यज्ये यर्थ, 'अणगा रिय' भनगारिता-साधुत्व 'पन्चइहिति' प्रजिष्यति प्राप्स्यति ।। सू ५२ ॥ टीका-'से ण' इत्यादि । 'से ण' स खलु दृढप्रतिजो दारक 'भविस्सइ अणगारे' अनगारो भविष्यती यन्वय , स कादृशो भविष्यतीत्याह 'भगवते' भगवान् अति शयधारी, 'ईरियासमिए' ईर्यासमित गमनक्रियाया यतनायुक्त , 'जाव' यावत्-यावच्छब्दात्-भाषासमित , एपणासमित , इत्यादि पञ्चसमितियुक्त , 'गुत्तवमयारी' गुप्तब्रह्मचारीगुप्तब्रह्मचर्यवान् ॥ सू ५३ ॥ 'से ण तहाख्वाण' इत्यादि। (से ण) वह दृढप्रतिज्ञ कुमार नियम से (तहारूयाण थेराण) तथारूप-सम्यग्ज्ञान आदि गुणों से युक्त स्थविरों के (अतिए) पास (केवल वोहिं) केवल बोधि कोविशुद्ध सम्यग्दर्शन को (बुझिहिति) प्राप्त करेगा-उसका अनुभव करेगा, (बुज्झित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वदहिति) अनुभव करने के बाद फिर वह अगार--अवस्था से विरक्त हो कर साधु अवस्था को प्राप्त करने वाला होगा । सू ५२ ॥ 'से ण भविस्सइ' इत्यादि। (से ण) वह दृढप्रतिज्ञ कुमार (अणगारे भगवते) अनगार भगवत 'से ण तहारूवाण' त्याह (से ण) ते प्रतिज्ञ शुमार नियमयी (तहारूवाण थेराण) तथा३५ सभ्यज्ञान माहि गुणोथी युति स्थविरानी (अतिए) पासे (केवल बोहिं) से वज विशुद्ध सम्यनन (बुज्झिहिति) पास ४२२-तना मनुल ४२०, (बज्झित्ता अगाराओ अणगारिय पचइहिति) अनुभव ४श सीधा पछी ते मारઅવસ્થાથી વિરક્ત થઈને સાધુ-અવસ્થાને પ્રાપ્ત કરવાવાળે થશે (સૂ પર) 'से,ण भविस्सई त्यहि (से ण) ते प्रति अभार (अणगारे भगवते) मनभार समपन्त (भवि
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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