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पीयूषवर्षिणी-टीका सू ५० अम्पडपरिग्राजकषिपये भगवद्गीतमयो संपाद ६१७---- भोगेहिं जावसयणभोगेहिणोसजिहिति,णोरजिहिति,णोगिझिहिति, णो मुज्झिहिति, णो अज्झोक्वजिहिति ॥ सू० ५०॥
* मूलम्-से जहाणामए उप्पले इ वा पउमे इवा कुसुस दृढप्रतिज्ञो दारक 'तेहिं विउलेहि अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहि तर्विपुलैर नमोर्गविच्छयनभोगै –अत्र यावच्छब्यापानलयनरत्रभोगैरिति ग्राह्यम् , 'णो सजिहिति' नो सयनि-न सग सम्बध करिष्यति, 'णो रनिहिति' नो रड्यति न राग-प्रेम भोगसम्बधहेतु करिष्यति, ‘णो गिज्झिहिति' नो गर्द्धिप्यते-नो गृद्विभाव करिष्यति, 'णो मुज्झिहिति' नो मोहिष्यति मोह न करिष्यति ‘णो अझोववनिहिति' नो __ अच्युपपस्यते न तदेकानमना भविष्यति ॥ सू० ५० ॥
टीका-'से जहाणामए' इत्यादि । 'से जहाणामए' अथ यथा नाम
'तए ण से दढपइण्णे' इत्यादि । ' (तए ण) माता-पिता के इन वचनों को सुनने के बाद (से दढपइण्णे दारए) वह दृढप्रतिज कुमार (तेहिं विउलेहि अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहिं णो सनिहिति) उन अन्न आदि विपुल भोगों मे बिलकुल ही आसक्तचित्त नहीं होगा। (णो रजिहिति) अनुरक्त नहीं होगा। (णो गिज्झिहिति) उनमें गृद्ध नहीं होगा, (णो मुज्झिहिति) मूर्छित नहीं होगा, और (णोअझोववजिहिति) न उनमे सर्वथा एकाग्रमन ही होगा। सू ५०॥
'से जहाणामए' इत्यादि । इस सूत्र में "इ वा" ये शब्द वाक्यालकार में प्रयुक्त हुए हैं। (से जहाणा'तए ण से दढपइण्णे' त्या
(तए ण) मातापिताना सेवा पयन सामण्या पछी, (से ढपइण्णे दारए) ते प्रतिज्ञ भा२ (तेहिं विउलेहि अण्णभोगेहिं जाव सयणभोगेहिं णो सजिहिति) તે અન્ન આદિ વિપુલ ભેગોમાં બિલકુલ જ મનની આસક્તિ રાખશે નહિ, (णो रजिहिति) मनु२४त थरी नडि, (णो गिज्झिहिति) तभा शृद्ध थशे नडि, (णो मुज्झिहिति) भूछित थशे नडि अने तेभा (णोअझोक्वज्जिहिति) સર્વથા એકાચમન પણ થશે નહિ (સ ૫૦). ___ 'से जहाणामए' ईत्यादि
॥ सूत्रमा "इ वा से ०४ पाया ४१२३२ १५सयोछे (से जहा