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पीयूषवर्षिणी टोकास ४८ अम्यडपरिव्राजकविषये भगवद्गोतमयो सवाद ६१५
गधव्वणकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही वाहुप्रमदी वियालचारी साहसिए अलं भोगसमत्थे यावि भविस्सइ ॥ सू० ४८ ॥
मूलम् - - तए ण दडपण्णं दारगं अम्मापियरो वाव -
उसले ' गान्धर्व - नाट्य कुगल गा धर्वे- गातिविद्याया नाट्ये-नाट्यशास्त्रे च कुशल = निपुण, 'अट्ठारस - देसभाषा-विसारए' अष्टादश-देश-भाषा - विशारद, 'हयजोही' हयजोनी - ह्येन = अश्वेन युयते तच्छीलो हययोधी, एव 'गयजोही रहजोही बाहुजोही ' गजयोधी रथयोधी बाहुयोधी - ज्ञातव्य ' बाहुप्पमद्दी' बाहुप्रमर्दी - बाहुभ्या प्रमृद्नाति तच्छी बाहुप्रमर्दी, 'वियालचारी ' विकालचारी- निर्भयत्वाद्विकाले रात्रावपि चरति तच्छालो निकालचारी, अत एव ' साहसिए' साहसिक = अतिशूर, 'अल भोगसमत्थे ' अलम्भोगसमर्थ - अलम् = अन्यर्थं भोगानुभवसमर्थ भोगानुभवसमर्थ ' यावि भविस्सद' चापि
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भविष्यति ॥ सू० ४८॥ ·
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टीका - ' तर ण ' इत्यादि । 'तए ण दडपण्ण दारय तत खलु दृढअनुराग वाला तथा गान्धर्वविद्या मे और नृत्यकला मे कुशल होगा । ( हयजोही गयजोही रही. जोही ) यह अश्वयोधी, गजयोधी, रथयोधी और बाहुयोध होगा । ( बाहुप्पमद्दी वियालचारी साहसिए ) यह बाहुप्रमर्दी होगा और अति शूर होगा, इस लिये इसे विकाल रात्रि मे भी आने-जाने मे कोई भय नहीं होगा । ( अल भोगसमत्ये
यात्रि भविस्सर ) तथा यह भोगसमर्थ भी होगा ।। सू ४८ ॥
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¿ 'तर ण दढपइण्ण दारग ' इत्यादि ।
(तएण ) बाद मे ( दढपण दारग) इस अपने दृढप्रतिज्ञ बालक को गधव्व-गट्ट - कुसले) से कुमार गीतमा, गांधर्व विद्याभा भने नृत्यजाभा दुशण थशे (हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही) से अश्वमोधी, गभ्योधी, રથયેાધી, અને ખાહુયેાધી થશે ( बाहुप्पमदी वियालचारही साहसिए) એ બાહુપ્રમદી થશે અને અતિ શૂરવીર થશે. આ માટે તેને વિકાળ રાત્રિમા यस भाववा-त्वाभा अर्ध लतनो लय थशे नहि (अल भोगसमत्थे यावि भवि रसइ) तथा था लोग समर्थ पशु थशे (सू ४८)
'तर ण दढपइण्ण दारग' हत्याहि
(तए ण) त्यार पछी ( दढपण दारग) मा पोताना दृढप्रतिज्ञ भाजने