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पीयूषषिणी-टीका सु ११ भम्यहपरिव्राजविपये भगवद्गीतमयो सघाद ५९९ दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूयाई बहुजणस्स अपरिभूयाइ तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पञ्चायाहि ॥ सू ४१॥ . मूलम्--तए ण तस्स दारगस्स गन्भत्थस्स समाणस्स अम्मापिईणं धम्मे ढढा पडण्णा भविस्सइ ॥ सू ४२॥
दान-कोपयुक्तानि, 'पिच्छट्टिय-पउर-भत्तपाणाइ' पिच्छदित-प्रचुर-भक्तपानानिविच्छर्दितानि-दत्तानि प्रचुराणि भक्तानि पानानि-पेयानि यै कुलस्तानि तथा, 'बहुजणस्स अपरिभूयाइ' बहुजास्याऽपरिभूतानि, वैरप्यपराजितानात्यर्थ । 'तहप्पगारेसु' तथाप्रकारेपु-तादृशेषु कुलेपु, 'पुमत्ताए' पुस्तया-पुरपतया, 'पञ्चायाहिइ' प्रत्यायास्यति-उपस्यत इत्यर्थ ॥ सू ४१॥
टीका-'तए ण' इत्यादि ।'तए ण' तत खलु-तत्पश्चात् 'तस्स दारगस्स' तस्य दारकस्य वालस्य 'गम्भत्थस्स चेव' गर्भस्थस्यैव गर्भाऽऽगतस्येव सत पुण्यशालितया तप्रभावात् 'अम्मापिईण धम्मे' मातापित्रोधर्मे 'दढा पदण्णा' दृढा प्रतिज्ञा 'भविस्सइ' भविष्यति-धर्माराधनाय दृढनिश्चयो भविष्यता यर्थ ॥ स ४२ ॥ नहा पा सकते हैं, (तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पञ्चायाहिद) ऐसे विशिष्ट कुलो मे से किसा एक उल मे यह अम्बड परिव्राजक पुस्परूप से उत्पन होगा ॥ सू० ४१ ॥
'तए ण तस्स दारगस्स' इत्यादि ।
(तए णं) इसके पश्चात् (तस्स दारगस्स) उस लडक के (गम्मत्यस्स समाणस्स) गर्भ में आते ही पुण्य के प्रभाव से (अम्मापिईण) मातापिता को (धम्मे दढा पटण्णा भविस्सद) धर्म मे दृढ आस्था उत्पन्न होगा ।। सृ० ४२ ॥ अपरिभूयाइ) मने २ थी ५५ ५२ल पामता नथी (तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चायाहिइ) सेवा विशिष्ट मुगामाथी आई से उगमा से અમ્બડ પરિવાજ પુરુષરૂપથી ઉત્પન્ન થશે (જૂ ૪૧)
'तए ण तस्स दारगरस' त्याल
(तए ण) त्या२ पछी (तस्स दारगस्स) ते छोराना (गभत्यस्स समा णस्स) मा माता पुश्यना प्रसार 43 (अम्मापिईण) माता-पितानी (धम्मे दढा पइण्णा भविस्सइ) धर्ममा १८ या२या पन्न थरी (सू ४०)