SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 690
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - भोपपातिकको किच्चा कहिं गच्छिहिति कहि उववनिहिति' गोयमा । अम्मडे णं परिवायए उच्चावरहिं सील-वय-गुण-वेरमणपञ्चक्खाण-पोसहो-ववासेहि अप्पाणं भावेमाणे बहुइ वासाइ 'कालमासे कालं किया कहिं गच्छहिति ? कहि उववनिहिति"कालमासे काल भृत्वा कुन गमिष्यति । कुलोपत्स्यते ? भगवानाह-'गोयमा! अम्मडे ण परिवायए' हे गौतम ! अम्बड खलु परिमाजक 'उच्चारएहि उच्चायचे नानाविधै , 'सील-वयगुण-वेरमण-पचरखाण-पोसहोवासेहि' शील-त-गुग--विरमग-प्रयाख्यानपोषधोपवास , गोलानि-"गील समाधौ" अस्माद् पञ्, नपुसकरवं लोकात्, शीलति-आत्म चितनरूप समाधि प्रामोति एभिस्तानि शीलानि (तानि चवारि-सामायिक-देशावकाशिक पोषधा-तिथिनविभागारयानि, व्रतानि-पञ्चाणुव्रतानि, गुणा-त्रीणि गुणवतानि, विरमण मिथ्या त्वान्निवर्तनम् , प्रत्याख्यान-पर्वदिनेषु त्याज्याना परित्याग, पोषधोपवास -पोष-पुष्टि धमेस्य वृद्धिमिति यावद् धत्ते इति पोषध , पोषधगन्दो रूढया पर्वसु वर्तते, पर्वाणि चाष्टमी-चतु दशी-पौर्णमास्यमावास्यातिथय , पूरणात् पर्वेत्युच्यते, पूरणत्व धर्मवृद्धिकारकत्वात् , पोषधे उप काल किच्चा) काल अवसर मे काल करके (कहिं गच्छहिति) कहा जायगा ? (कहि उवर जिहिति) कहा उत्पन्न होगा ? प्रमु ने कहा-(गोयमा) हे गौतम ! (अम्मडे ण परिवायए उच्चावएहि सील-वय-गुण-वेरमण-पञ्चक्खाण-पोसहोयवासेहि) यह अम्बड परित्राजक अनेक प्रकार के शीलात-जिनके द्वारा आत्मा के चितन रूप समाधि जीव प्राप्त करता है उनका नाम शोलवत है, गुणवत, मिथ्यात्वक्रिमण, प्रत्याख्यान-पर्वदिनों मे त्याग करने योग्य वस्तुओं का त्याग करना, पोषधोपवास-अष्टमी, चतुर्दशी, पौर्णमासी एवं अमा वास्या ये तिथियाँ धर्म का पोषण करता है इसलिये ये पौषध है, इनमें चतुर्विध आहार का मासे काल किच्चा). अपसरे पर रीन कहिंगच्छिहिति) या श? (कहिं उववजिहिति) 41641 थशे ? प्रभुरी तरभा यु-(गोयमा) 8 गौतम ! (अम्मडे ण परिव्वायए उच्चावएहि सील-व्यय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पासहोववासेहिं) मे २०१७ परिका, सन प्राश्ना शासनd (ना દ્વારા આત્માના ચિન્તનરૂપ સમાધિ જીવ પ્રાપ્ત કરે છે તેનું નામ શીલવત છે). ગુણવ્રત, વેરમણ–મિથ્યાત્વવિરમણ, પ્રત્યાખ્યાન-પર્વના દિવસોમાં ત્યાગ કરવા એગ્ય વસ્તુઓને ત્યાગ કરવો, પિષોપવાસ-અષ્ટમી, ચતુર્દશી, માની તેમજ અમાવાસ્યા એ તિથિઓ ધર્મનું પિષણ કરે છે તે માટે
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy