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________________ ५७८ औपणातको - - उड्ढं बाहाओ पगिझिय २ सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थेहिं अज्झवसाणेहिं पसत्थाहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं अन्नया कयाड तदावरणिजाण कम्माण विनयशीलतया, 'छहउद्वेण अनिक्खित्तेण तोफम्मेण ' पष्ठपप्टेन अनिक्षिप्तैन तप - कर्मणा-मुहुर्दिनद्वयाऽनशनरूपण अविश्रातेन तपोरूपेग कर्मणा, 'उड़ वाहाओ पांग ज्झियर' अर्व बाहू प्रगृहय२ माह ऊधे वृत्या 'मराभिमुहस्स आयावणभूमाए आयावेमाणस्स' सूर्याभिमुसस्याऽऽतापनाभूमावातापयत 'मुभेण परिणामेण' शुभेन परिणामेन शुभ रूपयाऽऽत्मपरिणत्या, 'पसत्येहि अज्झवसाणेहिं' प्रशस्तैरव्यवसान - उत्तममनोविशेषै, 'पसत्याहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं' प्रास्ताभित्रयाभिविशुध्यमानामि 'अन्नया कयाइ' अयदा कदाचित् तदावरगिजाग कम्मरण मृदुमार्दव गुण से युक्त है, तथा अत्यत विनीत भी है। (अनिक्खित्तेण) तथा लगातार (छ? छ?ण नवोफम्मेण ) छठ छठ-बेला-की तपस्या करनेवाला है। एव (उड्ड् वाहाओ पगिज्झिय२) बाहुओं को ऊपर उठा कर, (मुराभिमुहम्स) सूर्य के समुख (आयावणभूमीए आयावेमाणस्स) आतापना के योग्य प्रदेश में आतापना लेता है। अत (अम्मडस्स परियायगस्स ) इस अम्बड परिवाजक को (सुभेण परिणामेण ) शुभ परिणाम में-शुभरूप आत्मा की परिणति से, ( पसत्येहि अज्झवसाणेहिं) प्रशस्त अध्यवसानों से-उत्तम विचारधाराओं से, (पसत्याहिं लेस्साहिं विसुज्झमाणीहि) प्रशस्त लेश्याओं का निशुद्धि होने से, (अण्णया कयाइ) किसी एक समय (तदावर णिजाण कम्माण) तदापरणीय कर्मों-चार्य के, वैक्रियलब्धि के एव अवधि ज्ञान के पY छ (अनिक्रिसत्तेण) तथा सगातार (छछद्रेण तपोकम्मेण) ७४ ७४मसा-नी तपस्या ४२वावा छ तेभन (उड्ढ याहाओ पगिज्झिय) थने या ४रीन (सूराभिमुहस्स) सूर्यनी सन्भुज (आयाणभूमीए आया वेमाणस्स) मातापनाने योग्य प्रदेशमा माताधना छ साथी (अम्मडस्स परिव्वायगस्स) से सम्म परिघाने (सुभेण परिणामेण) शुभ परिणामी, शुभ३५ मात्भानी परियतिथी, (पसत्थेहिं अज्झरसाणेहिं) प्रशस्त मध्य सामाथी-उत्तम विचारधारासाथी, (पसत्याहिं लेत्साहिं विसुज्झमाणीहिं) प्रशस्त अश्यायनी विशुद्धि थवाथी (अण्णया कयाइ) समय (तदावरणि जाण कम्माण) तापीय भी-वीर्य, प1ि0 मने सवधिज्ञानना
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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