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________________ पीयूषषिणो-टोका स १९ अम्प्रडपरिप्राजकाचारवर्णनम् परिवायगाण णो कप्पड अगलएण वा चढणेण वा कुकुमेण वा गाय अणुलिंपित्तए, णण्णत्थ एकाए गगामट्टियाए ॥ सू० १८॥ मूलम्-तेसि ण परिव्वायगाण कप्पइ मागहए पत्थए "तेसि ण परिचायगाण णो कप्पा-अगलुएण या चदणेण वा कुकुमेण वा गाय अणुलिपित्तए तेषा मल पग्निाजकाना नो कल्पतऽगरणा वा चन्दनेन वा कुकुमेन वा गानमनुटेप्तुम्-सुगधिता येण गानाऽनुलेपन सन्यासिना न क पते इत्यर्थ , ‘णण्णत्य एकाए गगामट्टियाए 'नाड्यरैकरया गङ्गामृत्तिकाया -एका गङ्गामृत्तिका वर्जयित्वाऽय निषेध इत्यर्थ ॥ मू० १८॥ टीका-'तेसिंण' इत्यादि । 'तेसिं ण' तेपा खलु 'परिवायगाणं कप्पइ मागहए पत्थए जलस्स पडिग्गाहित्तए' परिव्राजकाना कल्पते मागप प्रस्थ जलस्य परिग्रहीतुम् , प्रस्य परिमाणविशेष , तथाहि-'दो असईओ पसई, दोहिं पसई हिं उनके लिये पहिरना अपर्जित है। (तेसिंण परिवायगाण णो कप्पइ अगलुएण वा चदणेण वा कुकुमेण वा गाय अणुलिंपित्तए णण्णस्य एकाए गगामट्टियाए) तथा उन परिवाजकों के लिये अगुरु से, चंदन एव कुकुम से गरीर पर लेप करना भी निषिद्ध है। सिर्फ यदि वे लेप करना चाहे तो एक मात्र गगा की मिट्टी का लेप कर सकते हैं ।। स १८॥ 'तेसिंण' इत्यादि। (तेसिं ण परियायगाण ) उन प्रत्येक परिवाजकों को अपने उपयोग में लाने के वास्ते (मागहए पत्थए जलस्स पडिग्गाहित्तए कप्पइ) केवल मगधदेश-प्रचलित प्रस्थप्रमाणमात्र जल लेना कल्पता है । प्रस्थ एक माप का नाम है। कहा भी है-दो चदणेण वा कुकुमेण वा गाय अणुलिंपित्तए णण्णत्थ एक्काए गगामट्टियाए) तथा ते પરિરાજને માટે અગુરુથી, ચદનથી તેમજ કાકુથી શરીર પર લેપ કરે પણ નિષિદ્ધ છે જો તે લેપ કરવા ચાહે તે એકમાત્ર ગગાની માટીને લેપ ४श श छ (सू १८) __ "तेसिं ण" त्यादि (तसिं जपरिव्वायगाण) ते प्रत्ये. परिमाये ताना उपयोगमा देवा भाटे (मागहए पत्थए जलस्स पडिग्गाहित्तए कप्पइ) भगध शभा प्रय લિત પ્રસ્થપ્રમાણમાત્ર જલ લેવુ કપે છે “પ્રસ્થ” એક માપનું નામ છે
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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