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________________ पीयूषमर्षिणी टीका व १७ कर्णादि शीलभ्यादि परिव्राजकानामाचारवर्णनम् ५४७ तेसिं णं परिव्वायगाणं णो कप्पइ आसं वा हत्थि वा उह वा गोणि वा महिसं वा खर वा दुरूहित्ता ण गमित्तए, णण्णत्थ बलाभिओगेणं । तेसिं ण परिव्वायगाणं णो कप्पड़ नडपेच्छाइ वा जाव मागहपेच्छाइ वा पेच्छित्तए । तेसि ण परिव्वायगाणणो । म /it क "ब्राजकाना न कल्पते इत्यन्वय', ' तेसि ण परिव्वायगाण नो कप्पड़ आस वा हथि "वा उ वा गोणि वा महिस वाखर वा दुरूहित्ताण गमित्तए णष्णत्थ वलाभियोगेण ' तेषा खलु परिब्राजकाना न र्कल्पतेऽश्व वा हस्तिन वोट्र् वा गावा महिप वा खेर वाऽधिरुह्य खल गन्तुम्--नान्यत्रे बलाऽभियोगात् - चलेन - बलात्कारेण ये अभियोग = नियोजन - बलवत्पारन्त्र्यनियोग इत्यर्थ, तस्मात्, भयत्र तेपा परिव्राजकाना गन्तु न कल्पते ।" " परि'व्वायगाण णो कप्पड़ नडपेच्छार वा जाव मागहपेच्छा वा पेच्छित्तए ' तेषा खलु परिवाजकाना नो कल्पते नटप्रेक्षणमिति वा याव मागधप्रेक्षणमिति वा प्रेक्षितुम् - डोली पर, अथवा झोल्लिका-यानविशेष पर, प्रवहण पालकी पर, बग्घी पर, एव स्यन्दमानिका - ताम T 1 नाम पर चढ़कर भी जाना साधुओं के लिए वर्जित है । (तेसिं ण परिव्वायगाण णो कप्पइ I *** ** S 'आस वाहवा हवा, गोणि वा, महिस वा, खर वा दुरूहित्ताण गमित्तर) उन परिव्राजकों को घोडे पर, हाथी पर, ऊँट पर, बैल पर, भैसा पर, एव गधे पर चढ़ कर भी चलना वर्जित है, (णण्णत्थ वलाभिओगेण) बलाभियोग को छोड़ कर । यदि कोई हठ करके अर्थात् जबर्दस्ती से बैठावे तो दोष नहीं है । (तेसिं ण परिव्वायगाण णो कप्पइ नडपेच्छाइ वा जाव मागहपेच्छाइ वा पेच्छित्तए) उन परिवाजको को यह भी उचित नहीं है, अर्थात् उनके आचारके अनुसार यह भी उन्हें वर्जित है कि वे 1 લઈને ઉપાડીને ચાલે છે એવી ડાલી પર અથવા શલ્લિકા નામના યાવિશેષ પર, પ્રવહશુ-પાલખી પર, મગ્ની પર તેમજ સ્વન્દમાનિકાન્તામામ પર गढीने पवु साधुयाने भाटे वति छे (तेसिं ण परिव्वायगाण णो कप्पइ आसा हथि वा उट्ट वा गोणिं वा महिस वा खर वा दुरूहित्ताण गमित्त ) ते-परिव्रानाने घोडा घर, हाथी पर, जट पर, जगह पर, कोसा पर, तेभ गधेडा पर थढीने यादावु वर्णित छे (णण्णत्थ बढाभिओगेण) मसालियोग छोडीने, अर्थ उरीने मरहस्तीथी मेसाडी हे तो दोष नथी (तेसिं ण परिव्वा गाण णो कप्पइ नडपेच्छाइ वा जाव मागहपेच्छाइ वा पेच्छित्तए) ते परित्राणौना
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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