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________________ पोयपपिणो टोका मु ९ अण्डयद्वयादीनामुपपातपिपये गौतमप्रश्न ५१३ मूलम् से जे इमे गामा-गर-णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कबड-मडव-दोणमुह-पट्टणा-सम-संवाह-सणिवेसेसुमणुयाभवति,तजहा-अंडुबद्धगा णियलवद्धगाहडिव टीका-से जे इमे दयादि । ‘से जे इमे' अथ य इमे 'गामा-गरणयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कबड-मडव-दोणमुह-पट्टणा-सम-सपाह -सणिवेसेस मणुया भवति' प्रामा-ऽऽकर-नगर-निगम-राजधानी-खड-कर्नट-मडम्बदोगमुरय-पदणाऽऽ-श्रम-समाध-मनिवेशेषु मनुजा भारत-पामादय प्राग व्यायाता , तेपु य इमे मनुष्या भवन्ति, 'तनहा तद्यथा- 'अडुबद्धगा' अण्डुपद्रका -अण्डनि अदु से देव होते है वे हा जीव आराधक होकर नियम से, आगामी एक हा मनुष्य भर से __ अथवा परम्परा से सात आठ भर से मुक्ति का लाभ करनेवाले होते है, अ य नहा । परन्तु __जो अकामनिर्जरा करके देवता होते है वे सभी निर्मागानुकूल भवान्तर प्राप्त कर ही यह नियम नहा है ।। सू० ८॥ 'से जे इमे गामागर' इत्यादि । ( से जे इमे ) जो ये जीन (गामा-गर-णयर-णिगम-रायहाणि-खेडकाड-मडर-दोणमुह-पट्टणा-सम-साह-सण्णिवेसेमु मणुया भाति) ग्राम में, आकर म, नगर म, निगम में, गजधानी म, खडे में, कर्मट म, मडम्ब में, द्रोणमुग्व में, पण म, आश्रम म, मनाध में, एव सन्निवेश मे मानन को पर्याय से उत्पन होते है और व किसी अपराधा (अपद्धया) लोह एव काष्ठ के बधनो से हाथ पैरों को बाधकर તેમજ સમ્મચારિત્રપૂર્વક અનુષ્ઠાનથી દેવ થાય છે તેજ જીવ આરાધક થઈને નિયમથી આગામી એક જ મનુષ્યના ભવથી અથવા પર પરાથી સાતઆઠ ભાવોથી મુક્તિને લાભ મેળવનાર થાય છે પરંતુ જે અડામનિર્જરા કરીને દેવતા થાય છે તે નિર્વાણ-અનુકલ ભવાતર પ્રાપ્ત કરે જ એ નિયમ नथी (सू ८) 'से जे इमे गामागर-' त्यादि (से जे इमे) 2 0 04 (गामा-गर-णयर-णिगम-रायहाणि-खेड-कब्बडमडन-ओणमुह-पट्टणा-सम-समाह-सण्णिवेसेसु मणुया भाति) आभभा, २०७२मा, નગરમાં, નિગમમા, રાજધાનીમાં, ખેડામા, કર્બટમા, મડબમાં, દ્રોણમુખમાં, પાટણમા, આશ્રમમાં. આ બધામાં તેમજ રાત્રિના પાનવની યયાયમાં ઉત્પન્ન
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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