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पीयूषयपिणी-टोका सू ६१ सुभद्रादीना म्यस्थाने गमनम
१९१ मूलम्त ए ण ताओ सुभदापमुहाओ देवीओ समणस्स भगवओ महावीरस्स अतिए धम्म सोच्चा णिसम्म ह-तु-जाव-हिययाओ उठेति, उहित्ता समणं भगव महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिण करेति, करित्ता वदति णमसति,
टीका-'तए ण ताओ' इत्यादि । 'तए ण ताओ सुभद्दापमुहाओ देवी ओ' तत ग्वल ता सुभद्राप्रमुसा देव्य 'समणस्स भगवओ महावीरस्स अतिए' श्रमणस्य भगवतो महावीरस्याऽन्तिके 'धम्म सोचा णिसम्म हट्ठ-त-जाव-हिययाओ' धर्म श्रुवा निशम्य दृष्ट-तुष्ट यावद्धृत्या 'उठाए उठेति' उत्थयोत्तिष्ठन्ति, 'उठ्ठित्ता समणस्म भगवो महावीरम्स' उ थाय श्रमणस्य भगरतो महावीरस्य 'तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिण करेंति' त्रिकृव आदक्षिणप्रतक्षिण कुर्वन्ति, 'करित्ता वदति णमसति'
'तए ण ताओ सुभद्दापमुहाओ' इत्यादि ।
(तए ण) इस के बाद (ताओ सुभद्दापमुहाओ देवीओ) वे सुभद्राप्रमुस देवियाँ भी (समणस्स भगवओ महावीरस्स) श्रमण भगवान महावीर के (अतिए) समीप (धम्म सोचा) पर्म श्रवण कर, एव (णिसम्म) उसे हृदयगम कर, (हद्व-तुद्व-जाव-हिययाओ) बहुत ही अधिक सुश एव मतुष्ट होती हुई जहाँ वे गडा थां वहाँ से (उढाए उतॄति) चल कर भगवान के समीप आया, (उद्वित्ता) आफर उन्होंने (समण भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिण करेंति करित्ता वदति णमसति) श्रमण भगवान् महावीर की तीन
"तए ण ताभो सुभद्दापमुहाओ" त्यादि
(तए ण) त्या२ पछी (ताओ सुभदापमुहाओ देवीओ) ते सुभद्रा-प्रभुम हेपीमा ५४ (समणस्स भगरओ महावीरम्स) श्रम लगवान महावीरना (अतिए) सभीष (धम्म सोन्चा) धर्म-अप ४शन, तभन्न (णिसम्म) तनय गम ४रीन (हठ्ठ-तुद्व-जाव-हिययाओ) मई मुख तम सतष पामती या तमा Geी ती त्याथी ( उढाए उद्रुति ) यासीन माननी पासे मापी, (उद्वित्ता) भावीन समाये ( समण भगव महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिण करेति, करित्ता वदति णमसति) श्रम समपान महावीरने मा२ साइक्षिण