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पोयूपयर्षिणो-टीका र ५९ परिषद स्वस्वस्थानगमनम् । ४८७ भंते । णिग्गथे पावयणे, एव सुप्पण्णत्ते, सुभासिए, सुविणीए, सुभाविए। अणुत्तरे ते भते । निग्गथे पावयणे । धम्म ण आडक्खमाणा तुभे उवसम आडक्खह, उवसम आइक्खमाणा विवेग आइक्खह, दिवेग आडस्खमाणा वेरमण आइक्खह, वेरमुभाषितम्-भावन्यजनात , 'मुविणीए' मुविनीतम्-शिप्येषु मुटु विनियोजितत्वात् , 'सुभाविए' सुभावितम् मुटु भाषितम्-तत्त्वकथनात् , 'अणुत्तरे' अनुत्तर-नात्युत्तर यस्मात् तद्-अनुत्तर-मश्रेष्ठ, तर भन्न्त निम्रय प्रवचनम् । 'धम्म ण आइक्ग्वमाणा तुम्भे उपसम आदमवह ' धर्म सन्याचक्षाणा यूयमुपशमम्-कोधादिनिरोधम् आरयाथ= कथयथ, 'उपसमं आटक्ग्वमाणा विवेग आइक्खह' पगममाचसाणा विवेकमारयाथ, कोगनिनिरोध कथयन्तो यूय विवफ-हयोपादेयविवेचन कथयय, 'विवेग जाइक्खमाणा वेरमण आदमवह '-विकमाचक्षाणा विरमणमारयाय, विरमणम् प्राणातिपातादिनिवर्त
सुन्दर रूप से पदार्थी के स्वरूप को प्रकट किया, (मुविणीए) आपने शिष्यों को खून समझाया, (सुभाविए) जीवादि सभी तत्वो को आपन अच्छी तरह से समझाया । (अणुत्तरे ते भते । णिग्गथे पावयणे) हे भद त ! आपका यह निम्रन्य प्रवचन सर्वोत्कृष्ट है। ह भदन्त । (धम्म ण जाइक्खमाणा तुम्भे उवसम आइक्खह) धर्मका उपदेश करते समय आप उपशम भार क्रोधादिनिरोध का उपदेश करते हैं, (उबसम आइक्खमाणा विवेगआठक्खह) क्रोधादिक के निरोध का उपदेश करते समय हयोपादयरूप विवेक का उपदेश देते हे, (विवेग आटक्खमाणा वेरमण आइक्खह) विवक का उपदेश करते समय प्रागातिपातादिक से विरक्त होने का भी उपदेश करते है, (वेरमण आइक्खमाणा अफरण पावाण फम्माण आइ
मापे भूम सु. ३५थी पहाथीना सपने घडट र्या (सपिणीए) मापे शिष्याने धूम मातव्या (सुभाविए) मा तत्वाने भागते सभालच्या (अणुत्तरे ते भते ' जिग्गथे पावयणे) महन्त । भानु मा नियन्य अवयन साइट के महन्त । (धम्म ण आइक्समाणा तुभे उपसम आइक्सह) ધર્મને ઉપદેશ કરતી વખતે આપે ઉપશમભાવ–કોધાદિનિરોધને ઉપદેશ ४थे। छे (उसम आइस्यमाणा विवेग आइरसह) धाडिना निरोधन ७५ हेश २ती मते य-उपाय ३५ दिवेन। पहेश ४या छ (विवेग आइक्समाणा वेरमण आइक्सह) विवेठना पहेश ४२ती १५ प्रतिपाताहि४थी