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________________ ४७४ औपपातिक - - मूलम-तमेव धम्मंदविहं आइक्खड, तं जहा-अगार 'जह य' यया च-येन प्रकारेग 'परिहीणकम्मा' परिहीनकमाग -परिहीगानि-विनष्टानि फर्माणि येषा ते, सिदा- सिद्धाठयमुरति' सिदालयमुपयति-लोकातक्षेत्रलक्षण स्थान प्राप्नुवति, तथा भगवान् परिकथयतीति पूर्वणा वय ॥ सू०५६ ॥ टीका-तमेर' इत्यादि । 'तमेर धम्म दुविह आइक्खड ' तमव= पूर्वोक्तमेव धर्म द्विविध-द्विप्रकारम् , आग्यानि-कथयति, 'तं जहा' तयथा-' अगारसम्म अणगारधम्म च' अगारधर्मम्, अनगारधर्म च-अगार गृह तारय्याढगारा गृहस्था। गृहा दारा इत्यादिवत् , यद्वा-अगाग्मत्स्येपामियर्थे 'अर्ग आदिभ्योऽच्' इति मनाया प्रयय, तेपा धर्म चक्ष्यमाणस्वरूपस्तम, तथा अनगारधर्म न विद्यतऽगार गृह येपा तेऽनगारा साधवस्तेपा धर्मस्त च आरयाति । तत्र प्राधान्यात् प्रथम जह य परिहीणफम्मा सिद्धा सिद्धाल्यमुति ) पुत्रफलबादिका मे आसक्तिरूप राग से उपार्जित ज्ञानावरणीय आदिक फर्मों का पापमय फल जैसे होता है और कर्मों को नष्ट कर जीन सिद्धावस्थापन हो सिद्धालय में जैसे पहुँचते है यह सब भी प्रभु ने अपनी देशना में स्पष्ट किया । सू ५६॥ 'तमेव धम्म दुविह आइक्खइ' इत्यादि प्रभु ने (तमेव धम्म दुविह आइक्खइ) इस धर्म को दो प्रकार से कहा है। ('अगारधम्म अणगारधम्म च) १ गृहस्य का धर्म और दूसरा अनगार-मुनि का धम । (१) 'अगार' नाम घर का है। परन्तु इस पद से यहाँ उनमे रहने वाले गृहस्था का ग्रहण हुआ है, अथवा "अर्श आदिभ्योऽच" इस सूत्र से अत्यर्थ मे अच् प्रत्यय करने से भी उनमें रहने वाले गृहस्थों का ग्रहण हो जाता है। જન કરેલા જ્ઞાનાવરણીય આદિક કર્મોના પાપમય ફલ જેમ થાય છે અને કર્મોને નાશ કરી જીવ સિદ્ધ-અવસ્થા પ્રાપ્ત કરી સિદ્ધાલય (મુક્તિ સ્થાનમા) જેમ પહોચે છે તે બધુ પણ પ્રભુએ પિતાની દશનામા સ્પષ્ટ કર્યું છે ? "तमेव धम्म दुविह आइक्खई" त्याहि । प्रभुय (तमेव धम्म दुविह आइक्खइ) 0 धर्म में प्रारना ४ा ('अगारधम्म अणगारवम्म च) १-श्यना धर्म अने मी मनगार-मुनिना (૧) અગાર એટલે ઘર પરતુ આ પદથી અહી તેમાં રહેવાવાળા गृहस्थे। मेवो मर्थ ड य छ, अथवा “ अर्श आदिभ्योऽच्" मा सूत्रा 'अस्ति' अर्थमा अय् प्रत्यय सापाथी पर तमा २वापामा गृहस्था--मेवा અર્થ થાય છે
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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