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__ पोपषिणो-टोका स ५. भगवतो धर्मदेशना
४४३ लियाए परिसाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अणेगसयाए अणेगसयवदाए अणेगसयवदपरिवाराए य मदमहालियाए' तस्याश्च महातिमहत्या 'परिसाए' परिपढ =सभाया , 'इसिपरिसाए' मषिपरिपद -मपन्ति=जानति अवविज्ञानादिनेति पय -अतिशयज्ञानव त , तेपा परिपत्सभा तस्या , 'मुगिपरिसाए' मुनिपरिपट -मुणति-मन्यन्ते वा-प्रतिजानन्ति सर्वसावद्यव्यापारोपरतिम् इति मुणयो-मुनयो वा-सर्वपिरतिम त , तेपा परिपत् तस्या मुणिपरिपदो, मुनिपरिपढो वा, 'जपरिसाए' यतिपग्पिट -यत ते दशविधयतिधर्मे इति यतय । तथा चोक्तम्---
एवं यः शुद्धयोगेन, परित्यज्य गृहाऽऽअमान् ।
सयमे रमते नित्य, स यतिः परिकीर्तितः ॥ १ ॥ इति तेपा यतीना परिपत्-तस्या , 'देवपरिसाए' देवपरिषद -देवाना-भवनपत्यादिचतुर्विधदेवाना परिपत्-तस्या , 'अणेगसयाए' अनेकशताया -अनेकानि शतानि यस्या साऽनेकाता तस्या , 'अणेगसयवदाए' अनेकशतवृदाया =अनेकशतानि वृन्दानि= समूहा यस्या साऽनेकगतवृदा तस्या , 'अणेगसयवदपरिवाराए' अनेकशतवृन्दपरिके पुत्र कूणिक राजा को, तथा-(सुभद्दापमुहाण देवीण) सुभद्राप्रमुख राजरानियों को, (तीसे य महइमहालियाए) तथा उस वटी भारी (परिसाए) सभा को, (इसिपरिसाए) ऋपियो-अवधिज्ञान से पदार्थों को जानने वालों की सभा को, (मुणिपरिसाए) मुनियो-सर्वसावंद्य व्यापारों के मन वचन एव काय आदि से त्यागियों की सभा को, (जइपरिसाए) गृहाश्रम का परित्याग कर जो मन, वचन, काय के शुद्धयोग से म्यम में अर्थात् दश प्रकार के यतिधर्म मे नित्य यत्नवान होते है वे यति है, उनकी सभा को, (देवपरिसाए) भग्नपति आदि चतुर्निकाय के देवों की सभा को, (अणेगसयाए) अनेकशतम्रयावाली (अणेगसयवदाए) अनेकगत वृन्द (समूह) बाली (अणेग४ना पुत्र शु शतने, तथा-(सुभद्दापमुहाण देवीण) सुभद्रा-प्रभु श०१२ साने (तीसे य महइमहालियाए) तथा तमह भाटी (परिसाए) समाने, (इसि परिसाए) ऋषिशी-अवधिज्ञानथी पहायाने नाणायानी समान, (मुणि परिसाए) मुनिमा सपसावधव्यापारीने मन क्यन तभन डाय माहिया त्याग ४२ना२नी समाने, (जइपरिसाए) स्थाश्रमना परित्याग ४१२ भन, વચન, કાયના શુદ્ધયોગથી સ યમમાં અર્થાત્ દશ પ્રકારના યતિધર્મમાં नित्य यत्नवान २९ छ । यति छ तेम समाने, (देवपरिसाए) सवनपति माहि यतुनियना हेवानी समान, (अणेगसयाए) भने शत (से1) अभ्या