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ક૨૮
औपपातिको रिसवर-कंचुइज-महत्तर-बद-परिस्खित्ताओअतेउराओणिग्गच्छ न्ति,णिग्गच्छित्ता जेणेव पाडियकजाणाड तेणेव उवागच्छति,उवागच्छित्ता पाडियकपाडियका जत्ताभिमुहाड जुत्ताइ जाणार्ड दुरू. चेष्टितम् , चितित- मनोगत, प्रार्थितम् अभिलपित तेपा विनाभि , 'सटेस-णेवत्थ-ग दिय-वेसाहि' स्वदेश-नेपथ्य-गृहीत-वेपामि -स्वदेशस्य यानि नेपथ्यानि-वनभूषण धारणरीतय , तैर्गृहीता वेपा यामि तास्तथा तामि , 'चेडिया-चप वाल-वरिसवर-कचु इज्ज-महत्तर-वद-परिक्खित्ताओ' चेटिका-चक्रनाल-वर्षवर-कञ्चुकीय-महत्तर-वृद परिक्षिप्ता ~चेटिकाना=दासीना चकवाल मण्डलम्, वर्परा, क्लीना, कञ्चुकीया अन्त पुरयहि प्रदेशरक्षका , तदन्ये ये महत्तरा =प्रामाणिका अत पुररक्षका, तेषा यद वृद तेन परिक्षिप्ता =परिवेष्टिता यास्तास्तथा सुभद्राप्रमुसा ट्रेन्यो-राध्य 'अतेउराओ णिग्गच्छति अन्त पुरात्-स्त्रीगृहानिर्गच्छन्ति, 'णिग्गन्धित्ता' निर्गय, 'जेणेव पाडियक्जाणा' यव प्रत्येकयानानि पृथक् २ यानानि सन्ति, तत्रैवोपाग उति, उपागय 'पाडिया-पाडि प्रार्थित को अर्थात्-अभिलपित को जानने मे विन थीं, (सदेस णेवत्थ ग्गहिय वेसाहि) अपने २ देश की रीति के अनुसार वेपभूपा धारण की हुई थीं, ऐसी इन विदेशी दासियों से, तथा-(चेडिया-चक्कवाल-चरिसवर-कचुइज्ज-महत्तर-चंद-परिक्खित्ताओ) विदेशी दासियों से मिन्न दासियों के समूह से, वर्षवरों से नपुसकों से, कचुफियों से तथा और भी अय प्रामाणिक अन्त पुर रक्षकों से परिक्षिप्त घिरी हुई होकर (अतेउराओ णिग्गच्छति) अत पुर से निकली, (णिग्गच्छित्ता) निकलकर (जेणेव पाडियकजाणाइ) जहा अपने २ याय अलग २ यान रग्वे हुए थे, (तेणेव उवागच्छति) वहा पर पहुंची, (उवागघिउत्ता, पाडियकपाडियका जत्ताभिमुहाइ जुत्ताइ जाणाइ दुरूहति) पहुँच कर उन पृथक् २ प्रार्थितने भेटले अमितापाने ती अपामा निपुर छती, (सदेसणेवत्थगहियवेसाहि) या पातपाताना शनी शत प्रभारी वेष धा२४ ४२३। उता सपी सा विशी हासीमाथी, तथा (चेडिया-चस्कपाल धरिसवर-कचुइज्ज-मह त्तर-पद-परिक्त्तिाओ) विशा हामीमाथी ही सामाना समूथी, तथा વર્ષવર-નપુસકેથી, કચુકીઓથી, તથા બીજા પણ પ્રામાણિક અ ત પુરક્ષ
थी परिक्षित-पीटाणवी मनान (अतेउराओ णिग्गच्छति) मत पुरथी नीजी, (निगच्छित्ता) नीजीने (जेणेव पाडियस्कजाणाइ) ज्या घातपाताने योग्य age1 जुहा यान (वाहन।) २२५वामा माल्या हुता (तेणेव उवागच्छति) त्या पाहाथी (उवागच्छित्ता पाडियक्कपाडियक्काइ जवाभिमुहाइ जुत्ताइ जाणाइ दुरू