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________________ ओपातिकमा याओ वहहि खुजाहि चिलाईहि वामणीहिं वडभीहिं बब्वरीहिं वउसियाहि जोणियाहि पल्हवियाहिं ईसणियाहिं चारुणियाहिं श्चित्ता -यात् गन्दात् 'पृतवलिफर्माण पृतकौतुकमगलप्रायश्चित्ता' इति सतह , तथा 'सन्ना लकार-विभूसियाओ' सर्वा-लवार-विमृपिता -सर्वग्लदारलता 'वहहिं सुजाहि' वहाभि कुब्जाभि -वक्रशरीरामि 'कृनडी' इति प्रमिदामि , 'चिलाईहिं' किरातीभि =किरात देशोत्पन्नाभि , 'वामणीहिं' वामनामि --अतिहस्व गरीरामि , 'वडभीडिं' वटमिकाभि चक्रा ऽध कायाभि , 'कबरीहि बर्वराभि =वर्वरदेशोपन्नामि , ''वउसियाहि' बकुशिकाभि , 'जोणियाहि योनिकाभि-योनिकदेशोपन्नामि , 'पल्हवियाहि' पहविकाभि =पहवदेशोपन्नामि , 'ईसिणियाहि 'ईसिन' नामकोऽनार्यदेशस्तनोपनाभि 'चारुणियाहिं' चार किनिकाभि , 'चारुफिनिक' देशविशपोत्पनाभि , 'लासियाहि लासिकामि लासकदेशो पायच्छित्ताओ) स्नान करके कौतुक तथा वलिकर्म से निवृत्त होकर, (सव्वा-लकार-विभू सियाओ) एवं समस्त अलकारा को धारण कर (बहहिं सुज्जाहि चिलाईहि) अनेक कुबडी दासियों से, अनेक किरातिनियों-किरात देशमे उत्पन्न दासियों से, (वामणीहिं) अनेक वामनियोंसे-जिनका शरीर अत्यत हस्व-छोटा था ऐसी दासियों से, (वडभीहिं) अनेक वटभियो-जिनकी कमर बिल्कुल झुक गई थी ऐसी दासियों से, (वब्बरीहि) बर्बर देशोद्भव अनेक दासियों से, (वसियाहि) बकुश देश की दासियों से, (जोणियार्हि) यूनान देश की दासियों से, (पल्हवियाहि) अनेक पलविकाओं--पहवदेश की दासियों से, (इसिणि याहि) इसिन नाम का एक अनार्यदेश है इस देश की दासियों से, (चारुइणियाहि) चारुकिनिक देश की दासियों से, (लासियाहि) लासकदेश की दासियों से, (लउसियाहि) निवृत्त ने (सव्वालकारविभूसियाओ) मा सर्प मसाशने धारण ४ीने (बहहिं सुजाहिं चिलाईहिं) मने दुमडी होसीमाथी, मने Eि तीसा-शित शमा उत्पन्न थयेटी हनीयाथी, (वामणीहिं) मन वामનિઓ-જેના શરીર અત્યંત નાના-(6ી ગણા) હતા એવી દાસીઓથી, विडभीहि) मने पाय-मनी म२ ४ qणी ई हुती मेवी हासीमाथी। वरीहिं) मार-शोरपन भने सायाथी, (बउसियाहिं) मश शनी हासीसाथी, (जोणियाहिं) यूनान शनी हामीमाथी, (पल्लवियाहिं) मने पलविस-पाप शनी हासीमाथी, (ईसि जियादि) सिन नाभना से मनाय देश छ त शनी हामीमाथी, (चारुणियाहि) याशिनि देशना हासीयाथी, (लासियाहि खास शनी हासामाथी, (लउसियाहि) स्थ शनी हासीमाथी (सिंहलीहिं) मिस शनी
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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