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________________ णो-टीका र ५४ पूणिकस्य भगवदुपासना ४३३ ज्जुवासड, तजहा-काइयाए वाइयाए माणसियाए । र-ताव सकुडयग्गहत्थपाए सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अहै विणएण पंजलिउडे पज्जुवासह । वाइयाए-जजं भगव ज्जुवासणयाए पज्जुवासइ' त्रिविधया पर्युपासनया पर्युपास्ते--भगवत पर्युपासना 'तजहा' तद्यथा-तत् त्रिविधव दर्शयति-'काइयाए वाइयाए माणसियाए।' का। वाचिक्या मानसिक्या, पर्युपारते इति पूर्वेणान्वय । तर कायिक्या पर्युपासनया तावत् 'सकुइयग्गहत्थपाए' सङ्कुचिताऽग्रहस्तपाद , 'सुस्मुसमाणे' शुश्रूपमाण = सेवमान , ‘णमसमाणे' नमस्यन्-अभिमुखे विनयेन प्राञ्जलिपुट पर्युपास्ते, 'वाइयाएजज भगव वागरेड' वाचिक्या पर्युपासनया-यद् यद् भगवान् व्याकरोति व्याख्याति, त्रिग्धि पर्युपासना से उनकी उपासना की। वह विविध उपासना इस प्रकार है-(काइयाए वाइयाए माणसियाए) काय से उपासना करना, वचन से उपासना करना एव मन से उपासना करना । (काइयाए ताव) कायिक उपासना इम प्रकार से उसने की-(सकुइयग्गहत्थपाए सुस्म्समाणे णमसमाणे अभिमुहे विणएण पजलिउडे पज्जुवासइ) प्रभु के समाप वे हाथपावों को मकुचित करके उचित आसन से बैठे । उनसे धर्म सुनने की इच्छा करने लगे, उहे वारपार नमस्कार करने लगे, पुन नम्र होकर प्रभु के सम्मुख दोनों हाथों को जोडते हुए प्रभु की सेवा करने लगे। (वाइयाए) वचन से उपासना उन्होने इस प्रकार की (ज ज भगवं वागरेइ) जो जो भगवान् कहते थे, उस पर राजा इस प्रकार कहते थे, है भगवान् । (से जहेयं तुम्भे वदह) आप जैसा कहते हैं, (एवमेय भते!) हे नभ७।२४ीने (तिनिहाए पज्जुनासणाए पज्जुवासई) त्रिविध पर्युपासना पडे तेमनी उपासना ४ ते विविध उपासना मा ४ारे छ-(काइयाए वाइयाए माण सियाए) याथी उपासना ४२वी, पयनथी उपासना ४२ तभ४ भनथा उपासना ४२वी (काइयाए ताव) यि उपासना तो मा सरे ४२री-(सकु. इयग्गहत्यपाए सुस्सूसमाणे णमसमाणे अभिमुहे विणएण पजलिउडे पज्जुवासइ) પ્રભુની પાસે તેઓ હાથ-પગને સંકુચિત કરીને ઉચિત આસન પર બેઠા તેઓ પાસેથી ધર્મ સાભળવાની ઈચ્છા કરવા લાગ્યા, તેમને વારંવાર નમસ્કાર કરવા લાગ્યા, અને નગ્ન થઈને પ્રભુની સન્મુખ બને હાથ જોડીને प्रभुनी सेवा ७२१ सया (वाइयाए) क्यनथा तभये २मा प्रमाणे उपासना 51-(जज भगव वागरेइ) २२ भगवान उडेता ता ते ५२ २001 1 प्रडारे मारता उता- मावान् । (से जहेय तुम्भे वदह) मा म हो।
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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