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। औपपातिकसने __ भगवओ महावीरस्स अदूरसामते छत्ताईए तित्थयराइसेसे
पासइ, पासित्ता अभिसेक हत्थिरयण ठवेड, ठवित्ता आभिसेकाओहत्थिरयणाओपञ्चोरुहइ, पचोरुहिताअवहटु पचरायकउहाड, तजहा-खग्ग छत्त उप्फेस वाहणाओ वालवीयणिं, जेणेव समणे अदूरसमापे-नातिदृरे नातिसमापे, किंचिद्रे इत्यर्थ । 'उत्ताईए तित्ययराटसेसे' उना दिकान् तीर्थकरातिशेपान्=तीर्थकरातिगयान् 'पास' पयति, 'पासित्ता' दृष्ट्वा, 'आभिसेक हत्थिरयण' आभिपेस्य हस्तिरत्नम् 'ठवेद, उवित्ता' स्थापयति, स्थापयित्ना, 'आभि सेकाओ हत्थिरयणाओ' आभिपेक्यात् हस्तिरत्नात् 'पच्चोरुहड' प्रयररोहति अपत रति, 'पचोरुहिता' प्रत्यवरह्य, 'अवहट्ट पच रायउहाद' अपहत्य पञ्च राजकर दानि-त्यक्त्वा पञ्च राजचिहानिराजाऽयमिति ज्ञापफानि चिह्नानि, 'तजहा' तद्यथा-तानि चिह्नानि यथा-'खरंग' सगम्, 'छत्त' उनम्, 'उपफेस' मुकुटम् 'उप्फेस' इति च्छइ) निकल कर जहाँ पूर्णभद्र उद्यान या वहाँ आये, (उवागच्छित्ता समणस्स भग वओ महावीरस्स अदूरसामते छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासइ) आकर उन्हान श्रमण भगवान महावार के न _अतिसमीप और.न.अतिदर-स्न्तुि कुछ-ही-दर-पर ताथकरों के अतिशयस्वरूप त्रादिकों को देसा, (पासित्ता आभिसेक हत्थिरयण ठवेइ) देखते ही उन्हान अपने हाथी को खडा करवाया, (ठवित्ता आभिसेकाओ हत्थिरयणाआ पञ्चोरुहट) हाथा के सडे होते ही वे उस हाथी से नाचे उतरे, (पच्चोरुहिता अवह? पच रायफउहाद) नाचे उतरते ही उहों ने इन पाच राजचिह्नों का परित्याग किया, (त जहा) वे पाच राजचिह ये हैं-(खग्ग उत्त उप्फेस वाहणाओ वालवीयणि) सद्गGधान तु त्या माव्या, (मागछित्तो समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसा मते छत्ताइए तित्थयराइसेसे पासइ) भावीन तमामे भय सावान भड़। વીરથી બહુ દૂર નહિ તેમ બહુ સમીપ નહિ, પણ જરા દૂરે, તીર્થ કરેના अतिशय स्व३५ ॥ोने लया, (पासित्ता आभिसेस्क हत्थिरयण ठवेइ) aan तम्या पोताना हाथीने माव्या, (ठवित्ता आभिसेस्काओ हत्थि रयणाओ पच्चोरहइ) हाथी सो रहेता तगाते हाथी 64Rथी नाय
तयां, (पच्चोरुहित्ता अवहट्ट पच रायकउहाइ) नीये तीन तमामे पाय शायिनोना त्या उयों (तजहा) ते पाय थिलो मा छ-(सग्ग छत्त उपफेस वाहणाओ वालपीयणि) म सा२, छत्र, 68स-भुट .पानत