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________________ ટ औपचातिवस्त्रे पुरओ महं आसा आसारा 'उभओ पासि जागा नागवरा पिओ रहसगेली || सू० ५१ ॥ प्रस्थिता, 'उभओ पासिं' उभयो गजा 'णागवरा' नागरा =जा या 'पिट्टओ' पृष्टत = 'रहस गेली' रथ- गेल्ली-रयसमूह समूहवाचको देशीय शब्द ॥ सू० ५१ ॥ मूलम् - तए ण से कूणिए राया भभसारपुत्ते अन्भुगयभिगारे पग्राहियतालयटे ऊसविय - सेय-च्छत्ते पवीडय - पार्श्वयो = वामनक्षिगयो 'जागा' नागा = महाता गुहारेग च वरा श्रेष्ठा गजा प्रस्थिता, तथामप्रस्थित । 'सगेली' इति टोका—' नए णं से' इत्यादि । ' तए णं से कृणिए राया भभमारपुत्ते ' तत खलु स कृषिको राजा भभसारपुन 'अभुग्गयभिंगारे ' अभ्युद्गतभृङ्गार - अभ्युद्ग त = पुरत प्रस्थित भृङ्गार = ' झार। ' इति प्रसिद्ध जलपान यस्य स तथा ' पग्गाहियतालयंटे' प्रगृहीततालवृन्त - प्रगृहीत तालवृन्त यस्मै स प्रगृहीततालवृन्त । ' ऊसविय - सेय-छत्ते उष्तचेतच्छन -' ऊसविय' उच्छ्रितम् उपरि वितानित श्वेत=घवल छत्र वरा) तथा उनके दोनों तरफ बडे २ हाथी एव जाति से और शृगार से श्रेष्ठ गजराज चलने लगे, और (पिओ) उनके पीछे २ ( रहसगेल्ली) रथका समूह चला ॥ ५१ ॥ 1 'तएण से कूणिए राया ' इत्यादि । (तए ण) उसके बाद (से कूणिए राया भभसारपुत्ते) भभसार के पुत्र कृणिक राजा कि, जिनके आगे (अभुग्गयभिगारे) जत्र से भरी हुईं झारिया थीं, (पग्ग हियतालयटे) जिनके दोनों ओर पवनपखे हो रहे थे, (ऊस विय- सेय उत्ते) जिनके ऊपर श्वेत छत्र धरा हुआ था, तथा (पत्रीय बाल बीयगीए) जिनके ऊपर वालव्यजन अर्थात् चमर ढोरा जा रहा था, साग्या (उभओ पासिं जागा णागारा) तथा तेभनी भन्ने तर भोटा भोटा हाथी तेभर नतिथी राजुगारथी श्रेष्ठ गमरान यासवा साज्या तथा ( पिट्टओ) तेभनी छाछ (रहसगेल्ली) रथनो समूह थाट्यो (सू ५१ ) " तर ण से कूणिए राया" इत्याहि ( तप ण) त्यार पछी ( से कूणिए राया भभसारपुत्ते) ललसारना पुत्र ते કૃણિક રાજા કે જેના न्यागण ( अन्भुग्गयभिंगारे ) सथी लरेसी सरीओ हृती, (पग्राहियनायटे) लेनी भन्ने मान्लुमे यवनय मा थर्ध रह्या देता, ' ( कसप्रिय - सेय-छत्ते) नेना पर श्वेत छत्र धरे हेतु, तथा (पवीइयवालवीय
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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