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________________ पीयूषधषिणी टोका सू ५० मगरद्दर्शनार्थ कूणिकस्य गमनम् ४१५ मूलम्-तए ण से कूणिए राया हारोत्थय-सुकयरडय-वच्छे कुंडलउज्जोडयाणणे मउडवित्तसिरए णरसीहे णरवर्ड परिदे णरवसहे मणुयरायवसहकप्पे अभहिय रायतेयलच्छी ___टीका-'तए ण से' इयादि । 'तए ण' ततस्तदन तरम् अष्टमगलगृहारितहयगजादिप्रस्थानानन्तर गल से कणिए राया' स कूगिको राजा 'हारोत्ययमुस्य-रटय-वच्छे' हारावस्तृत-सुकृत-रतिद-वक्षा-हागवस्तृत-हारप्रावृत, सुकृत मुचितम् अतएव रतिदम्-प्रातिप्रद वक्ष -हृत्यदेशो यस्य स तथा, 'कुडल-उज्जोइयागणे' कुण्डलोद्योतिताऽऽनन , मुकुटढीमगिरक, 'णरसीहे' नरसिंहो, 'णरवई' नरपति , 'गग्दि' नरेन्द्र 'गरवसहे' नरवृषभ -अद्गीकृतमार्यभारनिवाहक नात् । 'मणुय-- 'तए ण से कूणिए राया' दयादि । (तए ण) इसके बाद (से कृगिए राया) यह कूगिक राजा कि जिनका वक्षस्थल (हारोत्थय मुझय-रइय वच्छे) हागे से व्याम, सुचित और रतिद-प्रातिप्रद या, (कुडलउज्जोहयो-गणे) जिनका मुस कुटलों का आभा से अधिक दामिम्पन्न हो रहा था। (मउड'दित्त-सिरए) मुकुट धारण करने से जिनका मस्तक मुशोभित हो रहा था । (गरसीहे) जो मनुष्यों म मिह जैसे थे । (गरबर्ड) जो मनुष्यों के स्वामा थे, क्यों कि हर तरह से उनका पालन-पोषण करते थे । इसीलिये (णरिंदे) जो नरों में इन्द्र जैसे थे । (गरवसहे) जो नगं में वृपभसमान थे, क्या कि ये अपने ऊपर जो कार्य लेते थे उसे अवश्यमेव पूरा करते थे । (मणुयराय-वसह-कप्पे) मानवों क गजाआ के भा जो राजा-चावती-जैसे 'तए ण से कूणिए राया' त्यात (तए ण) त्या२ पछी (से कृणिए राया) ते विs Pin aनु पक्ष - यस (छाती) (हारोत्यय-सुकय-रडय-वच्छे) हाथी व्यास, सुरथित मने प्रीति तु (कुडल-उज्नोइया-णणे) भनु भुम उनी माला-प्राश 43 मधिल सिमपन्न थर्ड यु तु (मउड-दित्त-सिरए) भुट धारण पाथी रेनु भन्न सुशोलित थ दु तु (गरसीहे) २ मनुष्यामा सिंह ता, (णरचई) भनुष्याना पाभी उता, भले १२ तथा तेभनु पालन-पोषण उरता ता साथी (गरिंद) तेसो नशना छद्र पा संता (गरवसहे) २ युवामा वृषम-भमान उता, म तेसो पोताना ७५२ रे र्य देतात ते अपरयमेव ५३ २ता उता (मणुयराय-वसह
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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