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________________ पीयूषवर्षिणी-टीका सू ४८ कूणिवस्य वस्त्रादि धारणम् ३९७ कडग - तुडिय - थभिय-भुए अहिय - रूव - सस्मिरीए मुद्दियापिंगलगुलीए कुंडल उज्जोविया - णणे मउड- दित्त - सिरए हारोत्थयसुकय-रइयन्वच्छे पालंव- पलं माण- पड-सुकय- उत्तरिजे गाणाततस्तयो कर्मधारय । यद्वा- पिनहानि यानि ग्रैवेयकागि अङ्गुलीयकानि च तैर्ललिताद्गक, तत्र लल्ति क्रनमाभर गम = अन्यद् भूपगजात येन स तथा । 'वरकडग - तुडिय - यभिय - मुए ' बरकटक-त्रुटिक—स्तम्भित – भुज, वरकटकटिकै =श्रेष्टपल्यनाहुरक्षकारयैर्भूषणैर्भृषितबाहु, 'अहिय - रूत्र - सस्सिरीए' अधिकरूपसश्रीफ - अधिकसौन्दर्येण शोभासम्पन्न, 'मुद्दिया - पिंगल-गुलीए' मुद्रिका - पिहला - ङ्गुलीक –मुडिकाभि = अङ्गुलीयकै पिङ्गला अङ्गुल्यो यस्य स तथा, 'कुडल उज्जोविद्यागणे' कुण्डद्योतिताऽऽनन कुण्डल्दी त्या विद्योतितमुस 'मउड - दित्त - सिरए' मुकुट-दाम- गिरस्क, 'हारो-त्यय-सुक्यरइय-बच्छे' हारा -वस्तृत-मुक्त-रति-वक्षा होरेग अवस्तृतम् = आच्छान्ति सुकृतगोभनक्र्तिम् अतएव रतिद दृष्टिमुग्वद वक्षो यस्य स तथा, 'पाव-परवमाण - पडसुकय- उत्तरिज्जे' प्रालम्ब - प्रलम्बमान - पट - सुकृतोत्तरीय – प्रालम्बेन – दार्घेग उचित और भा आभूषण धारण किये । ( वर - कडग - तुडिय - थभिय-भुए) दोनों हाथों में सुन्दर कदे पहिरे एव बाहुआ पर भुजनध बाधे, (अहियरूवसस्सिरीए) इस प्रकार उनके शरीर का शोभा और भी अधिक द्विगुणित हो गई। (मुद्दिया-पिंगल-गुलीए) उनने जो मुद्रिकाएँ अगुलियों में पहिर रक्खी थीं उनसे उनकी अगुलिया सव पीली झायीं से चमकन लगीं । (कुड उज्जोवियाणणे) कुण्डला से मुग्ख चमकने लगा । (मउड - दित्तसिरए) मुकुट से मस्तक शोभित होने लगा । (हारोत्थय - मुकय- रइय-बच्छे ) हार से अच्छान्ति उनका वक्ष स्थल नटा हा मनोहर मालूम होने लगा, अत देखनेवालों को आनन्द होता था । (पालव - पवमाण- पड-मुकय- उत्तरिज्जे) अधिक ल्वे वस्त्र का इनने - भालूषशु धारय (वर- कडग-तुडिय-थभिय-मुए) भन्ने डाथमा सु पर्या, तेभर माहुयो र लुभ्ध माध्या ( अहिय-रूप-सस्सिरीए) भा अरे तेना शरीरनी खोला महु वधारे थ ग ( मुद्दिया-पिंगल-गुलीए) તેમણે જે વીટીએ આગળામા પહેરી હતી તેનાથી તેમની બધી આગળાએ पीजी आथी व्यभज्वा सागी (कुडल-उज्जोविया - णणे ) ३ उणेोथी भुम यभ उषा सायु (मउड-दित्त - सिरए) भुटथी भन्त शोलवा साज्यु (हारोत्थय-सुकय रइय-चन्छे) हारथी ढायेस तेनु वक्षस्थल (छाती) महुन भनोहर हेमातु
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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