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________________ पीयूषवपिणी-टीका सु ४७ घरव्यापृतम्य फूणिक प्रतिनिवेदनम वलवाउए तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता एयमाणत्तिय पचप्पिपड ॥ सू० ४६॥ मूलम्त ए णं से बलवाउए कोणियस्स रण्णो भभसारपुत्तस्स आभिसेक हस्थिरयणं पडिकप्पिय पासइ हय-गय - वोपागच्छति 'उबागच्छित्ता एयमाणत्तिय पचप्पिणड' उपागय एतामानमिका प्रयर्पयति ।। सू० ४६ ॥ टीका-'तए ण' इत्याटि । 'तए ण से चलबाउए' तत म्बलु स बलव्याप्त 'कोणियम्स रण्णो भभसारपुत्तस्स' कृणिस्य गजो भमसारपुत्रस्य 'आभि सेक्क हत्थिरयण पडिकप्पिय ' आभिपेक्य हस्तिग्न परिकल्पित 'पास' पयति, 'हयगय जाव सण्णाहिय ' हय गज यावत मनाहिता 'पास' प यति, अत्र यावच्छन्देन चुकी तन फिर यह कोटवाल (जेणेष बलवाउए तेणेव उवागच्छइ) जहाँ सेनापति था वहाँ पर पहुँचा। पहुँच कर उसने नगरी माफ हो चुका है इस बात की उसे खबर दी । सू० ४६ ॥ 'तए ण से पल्याउए' दयादि । (तए ण) इसके बार (से पलवाउए ) उस सेनापतिन (भभसारपुत्तस्स) भभसार अर्थात श्रेणिक के पुत्र (कोणियस्स रणो) ऋणिक राजा के (आभिसेक) अभिपिक्त पद (हत्थिरयण ) हस्तिर नको (पडिप्पिय) अछी तरह से गारित किया हुआ (पासइ) देना । (हयगय जाव सण्णाहिय पासड ) तथा त्य-गज आदि से युक्त चतुरगिणी सेना को भी सन्नद्ध देना। (सुभद्दापमुहाण देवीण महारथी मा६ थई त्यारे पणी ते पास (जेणे बल्याउए तेणेन बागच्छइ) જ્યા નાપતિ હતા ત્યા પહો અને પહેચીને તેણે નગરી માફ થઈ ગઈ छ, से वातनी तेने भरधी (१० ४६) 'तए ण से बलवाउए' प्रत्याहि (तए ण) त्या२५७ [से वल्याउए] ते सेनापति भभमारपुत्तस्मसमार मर्थात् अशिना पुत्र (कोणियम्स रण्णो)णि शतना [आभिसेक] मालिश्य५४ (हत्थिरयण) हाथीरत्नन (पडिकप्पिय) सारी शत शारे। (पासइ) नया (हयगय जाप सण्णाहिय पासइ) तथा उय ४ माहिया युद्धत यतुर गिणी
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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