SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पोयूषधषिणी-टीका सू ४३ वलव्यापृतस्य यानशालिक प्रत्यादेश ३७७ मूलम्-तए ण से वलवाउए जाणसालिय सदावेइ, सदावित्ता एव वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया। सुभद्दापमुहाण देवीणं वाहिरियाए उबट्टाणसालाए पाडियकपाडियकाड टीका-'तए णं से' इत्यादि । 'तए ण से चलवाउए' तत सल स बलयापूत -तदनन्तरम्-चतुरनिगासेनासजीकरणान तर स सेनापति 'जाणसालिय' यानगालिक यानाधिकृतम्, 'सदावेइ' गन्यति आह्वयति, 'सदावित्ता एव वयासी' गडयि वा यमनादात् 'खिप्पामेव भो देवाणुपिया क्षिप्रमेव भो देवानुप्रिय! 'सुभदापमुहाण देवीण ' सुभद्राप्रमुग्वाना-सुभद्रादाना देवीना 'वाहिरियाए उवट्ठाणसेण सण्णा) घोडा, हाथी, रथ एव सुभटों से युक्त चतुरगिणी सेना सजवायी, सजवा कर (जेणेव पलवाउए) जहाँ पर सेनापति थे (तेगेर उवागच्छद) वहाँ पर गया, (उवागन्छित्ता) पहुँचकर (एयमाणत्तिय पञ्चप्पिणड) उसने निवेदन किया कि आपने जो आना प्रदान का थी वह सर मैन आपकी आनानुसार ठाक कर लिया है | सू०४२ ॥ 'तए ण से पलाउए' इत्यादि । (तए णं) चतुरगिणी सेना जन सजी जा चुको तर (से ग्लवाउए) उस सेनापतिने (जागसालिय) यानशाला के अधिकारी को (सदावेइ) बुलाया, (सदावित्ता) बुलाकर (एव वयासी) इस प्रकार कहा-(खिप्पामेव भी देवाणुप्पिया) हे देवानुप्रिय । तुम शीत ही (सुभदापमुहाण दवीण) सुभद्रा आदि देवियों के लिये (वाहिरियाए उवट्ठाणसालाए) बाहिर की उपस्थानशाला म (पाडियकपाडियकाइ) एक एक रानी હાથી, રથ તેમજ સુભટોથી યુક્ત ચતુરગિણી સેના તૈયાર કરાવી તૈયાર કરાવીને (जेणेर बलयाउए) क्या सेनापति ता (तेणेव उपागच्छ)त्या गया, (गच्छित्ता) तर त्या पहायान (एयमाणत्तिय पचप्पिणइ) निवहन उयु माघेरे माझा આપી હતી તે બધુ મે આપની આજ્ઞા પ્રમાણે ઠીક કરી લીધુ છે (સૂ૦ ૪૨) तए ण से वलवाउए' त्यादि (तए ण) यतुर गिरी सेना न्यारे तयार थ युडी त्यारे (से बलवाउए) ते सेनापति (जाणसालिय) यानासाना मधिलारीने (सहावेइ) साव्या, (सदावित्ता) मोसादान (एव वयासी) मा अाधु-(खिपामेव भो देवाणुपिया) हे देवानुप्रिय । तमे ही (सुभद्दापमुहाण देवीण) सुभद्रा हि वाया भाट ( बाहिरियाए उपहाणसालाए) यानी पानसामा (पाडियक्क
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy